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*प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक अरस्तु को जीव विज्ञान एवं जंतु विज्ञान का जनक कहा जाता है |
*प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक अरस्तु को जीव विज्ञान एवं जंतु विज्ञान का जनक कहा जाता है |
*वनस्पति विज्ञान का जनक थियोफ्रेस्टस को कहा जाता है |
*चिकित्सा विज्ञान का जनक हिप्पोक्रेटस को कहते हैं |
*कैरोलस लीनियस को वर्गीकी का जनक कहा जाता है | इन्होने ने जीवों की द्विनाम पद्धति को प्रचलित किया | इस पद्धति के अनुसार प्रत्येक जीवधारी का नाम लैटिल भाषा के दो शब्दों से मिलकर बनता है, पहला शब्द वंश नाम तथा दूसरा शब्द जाति का कहलाता है | उदाहरण :
मनुष्य – Homo Sapiens
मेंढक – Rana Tigrina
आम – Mangifera Indica
सरसो – Brassica Campestris
*लैमार्क द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण मे जीवों को केवल दो जगतों जंतु जगत एवं पादप जगत में विभाजित किया गया |
*संघ प्रोटोजोआ के जंतु सबसे सरल होते हैं, और इसे सृष्टि के प्रथम जंतु मानते हैं | इसका शरीर एक कोशकीय होता है |
*अमीबा एक अनिश्चित आकार वाला सूक्ष्म अकोशकीय प्राणी है |
*फीता कृमि या टीनिया मनुष्य की आंत मे पाया जाने वाला एक रोग जनक परजीवि है |
*केंचुआ एवं जोंक द्विलिंगी जंतु हैं |
*जंतुओं का सबसे बडा संघ ‘संघ आर्थोपोडा’ है |
*घोंघा, सीप, आदि का खोल कैल्शियम कार्बोनेट का बना होता है |
*घोंघा, आक्टोपस आदि के रक्त में हीमोग्लोविन अनुपस्थित होने के कारण रक्त रंगहीन होता है |
*सीपिया जैसे कुछ जंतु में हीमोसायनिन के कारण रक्त का रंग नीला होता है |
*आक्टोपस को शैतानी मछली के नाम से जाना जाता है |
*अमीबा प्रोटोजोआ संघ का जंतु है |
*पेचिश नामक रोग एण्ट अमीबा द्वारा फैलता है |
*हिप्पोकैम्पस को समुंद्री घोडा भी कहते हैं |
*समुंद्री घोडा मत्स्य वर्ग का जंतु है |
*मेंढक उभयचर है क्योंकि यह जल-स्थल चर जंतु है |
*मेंढक त्वचा से स्वसन करने वाला प्राणी है |
*जंतुओं के विकास का सही क्रम: मत्स्य-उभयचर-सरीसृप एवं पक्षी है |
*मानव यूथीरिया उपवर्ग का प्राणी है |
*कोशिका की खोज राबर्ट हुक ने की |
*राबर्ट ब्राउन ने कोशिका में केंद्रक की खोज की |
*कोशिका जीव की सबसे छोटी कार्यात्मक एवं संरचनात्मक इकाई होती है |
*सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका तंत्र की कोशिका है |
*सबसे बडी कोशिका शुतुर्मुर्ग के अण्डे की कोशिका है |
*कोशिका भित्ती केवल पादप कोशिका में पाया जाता है | यह सेलुलोज का बना होता है | यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार बनाए रखने में सहायक होता है |
*ऊर्जा युक्त कार्बनिक पदार्थों का आक्सीकरण माइटोकाण्ड्रिया मे होता है, जिसमे काफी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है, इस लिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का शक्ति केंद्र कहते हैं
*रिक्तिका में एंथोसायनिन जैसे पदार्थ होते हैं जिसके कारण फूलों का रंग लाल, नीला, पीला आदि होता है |
*माइटोकाण्ड्रिया कोशिका के अंदर होने वाले आक्सी श्वसन का केंद्र है | यहां मुख्यत: कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के आक्सीकरण द्वारा ऊर्जा उत्पन्न होती है | इसी कारण इसे कोशिका का ऊर्जा गृह कहते हैं |
*हरित लवक : यह हरे रंग का होता है क्योंकि इसके अंदर एक हरे रंग का पदार्थ पर्णहरित होता है जिसे क्लोरोफिल भी कहते हैं इसकी सहायता से पौधा प्रकाश संश्लेषण करता है और भोजन बनाता है | इसलिए हरित लवक को पादप कोशिका की रसोई कहते हैं
*पत्तियों का रंग पीला उसमें कैरोटिन के निर्माण होने के कारण होता है |
*अवर्णी लवक : यह रंगहीन लवक है | यह पौधै के उन भागों की कोशिकाओं में पाया जाता है जो सूर्य के प्रकाश से वंचित हैं | जैसे : जडों, भूमिगत तनों आदि में |यह भोज्य पदार्थों को संग्रह करने वाला लवक है |
*वर्णी लवक : ये रंगीन लवक होते हैं | जो प्राय: लाल, पीले एवं नारंगी रंग के होते हैं | ये पौधै के रंगीन भाग जैसे पुष्प आदि में पाये जाते हैं वर्णी लवक के उदाहरण : टमाटर मे लाइकोपेन, गाजर मे कैरोटीन, चुकंदर मे विटानीन |
*हरे टमाटर व मिर्चा पकने पर लाल हो जाते हैं, ऐसा क्लोरोप्लास्ट का क्रोमोप्लास्ट में परिवर्तन होने के कारण होता है |
*आलू का जो भाग मिट्टी की सतह पर होता है वह हरा हो जाता है, क्योंकि आलू मे उपस्थित ल्युकोप्लास्ट क्लोरोप्लास्ट मे परिवर्तित हो जाता है |
*क्लोरोप्लास्ट लवक केवल प्रकाश संश्लेषी पौधों में पाया जाता है |
*पर्णहरिम की परतें सूर्य के प्रकाश को अवशोषित कर इस ऊर्जा का उपयोग जल के अणुओं को तोड़ कर उनसे हाइड्रोजन एवं आक्सीजन अलग –अलग करने में करतीं हैं | जल से प्राप्त हाइड्रोजन ही कार्बन डाई आक्साइड के साथ मिल कर भोजन बनाने का कार्य करती है |
*प्रत्येक जाति के जीवधारियों मे सभी कोशिकाओं के केंद्रक में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है | उदाहरण : मानव में 23 जोड़ा, चिम्पाजी मे 24 जोड़ा, तथा बंदर में 21 जोड़ा |
*DNA सभी आनुवांशिक क्रियाओं का संचालन करता है | जीन इसकी इकाई है | यह प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करता है |यह मुख्यत: केंद्रक में पाया जाता है |
*DNA से RNA का संश्लेषण होता है | यह केंद्रक एवं कोशिका द्रव्य दोनों मे पाया जाता है |
*RNA आनुवांशिक सूचना वाहक है |
*DNA कोशिकाओं की समस्त जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करता है |
*RNA का मुख्य कार्य प्रोटीन का संश्लेषण करना होता है |
*कोशिका का ईंधन कार्बोहाइड्रेड (ग्लूकोज) को कहते हैं |
*माइटोकांड्रिया मे ऊर्जा ए.टी.पी. के रूप मे बनती है |
*गुण सूत्र की रचना डी.एन.ए. तथा प्रोटीन से होती है |
*प्रत्येक जीवधारी की सूक्ष्मतम् इकाई कोशिका है |
*जीवद्रव्य की रचना जल , अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थों द्वारा होती है |
*माइटोकांड्रिया का सम्बंध श्वसन से होता है |
*पौधों मे जल का परिवहन जाइलम या दारू ऊतक द्वारा होता है |
*पादपों मे विभाज्योतक ऊतक की उपस्थिति के कारण ही वृद्धि की क्रिया निरंतर उनके जीवन भर होती रहती है |
*पौधों मे वृद्धि केवल कुछ निश्चित वृद्धि केंद्रों पर होती है, जो प्राय: मूल शीर्ष (जड़ का अग्र सिरा) तथा प्ररोह शीर्ष (तने या शाखाओं के अगले सिरे) पर होती है |
*फ्लोएम ऊतक का प्रमुख कार्य पौधों के हरे भाग मे निर्मित भोज्य पदार्थ को दूसरे भागों मे वितरण करना होता है |
*शरीर की समस्त ऐच्छिक तथा अनैच्छिक पेशियों का निर्माण पेशी ऊतकों से होता है | हृदय, फेफडे, आमाशय, आतें, वृक्क आदि का निर्माण भी पेशी ऊतकों से होता है |
*तंत्रिका ऊतक ऐसी विशेष कोशिकाओं से बनते हैं जो शरीर में संवेदनों को अंगों से मस्तिष्क तक तथा मस्तिष्क से अंगों तक ले जाने का कार्य करती हैं |
*अस्थि एक सुदृढ़ सन्योजी ऊतक है |
*हृदय पेशियां अरेखित पेशियां हैं एवं अनैच्छिक हैं |
*रेखित पेशियों का कार्य ऐच्छिक पेशियों का संचालन करना होता है |
*संदेश संवहन की मूल इकाई तंत्रिका कोशिका है |
*शैवाल प्राय: पर्णहरित युक्त, संवहन ऊतक रहित, आत्मपोषी होते हैं |
*जड़ पौधों का अवरोही भाग है, जो मुलांकुर से विकसित होता है |
*पुष्प पौधों का जनन अंग होता है |
*पत्ती हरे रंग की होती है, इसका मुख्य कार्य प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन बनाना होता है |
*प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाई आक्साइड, पानी, क्लोरोफिल एवं सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है |
*स्थलीय पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाई आक्साइड लेते हैं, जबकि जलीय पौधे जल में घुली कार्बन डाई आक्साइड लेते हैं |
*पत्ती की कोशिकाओं मे जल शिरा से परासरण द्वारा एवं कार्बन डाई आक्साइड वायु मण्डल से विसरण द्वारा जाता है |
*प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक जल पौधों की जडों के द्वारा अवशोषित किया जाता है, एवं प्रकाश संश्लेषण के दौरान निकलने वाला आक्सीजन इसी जल के अपघटन से प्राप्त होता है |
*क्लोरोफिल पत्तियों मे हरे रंग का वर्णक है, इसके 4 घटक हैं- क्लोरोफिल ए एवं बी, कैरोटीन तथा जैंथोफिल | इसमे क्लोरोफिल ए एवं बी हरे रंग का होता है और ऊर्जा का स्थानांतरण करता है | यह प्रकाश संश्लेषण का केंद्र होता है |
*क्लोरोफिल के केंद्र में एक मैग्निशियम का परमाणु होता है |
*क्लोरोफिल प्रकाश से बैगनी, नीला तथा लाल रंग को ग्रहण करता है |
*प्रकाश संश्लेषण की दर लाल रंग के प्रकाश मे सबसे अधिक एवं बैगनी रंग के प्रकाश में सबसे कम होता है |
*प्रकाश संश्लेषण की क्रिया एक उपचयन एवं अपचयन की अभिक्रिया है | इसमें जल का उपचयन आक्सीजन के बनने में तथा कार्बन डाई आक्साइड का अपचयन ग्लूकोज के निर्माण में होता है |
*आक्सिंस नामक पादप हार्मोन पौधों की वृद्धि को नियंत्रित करने वाला हार्मोन है | यह फसलों को गिरने से बचाता है |
*जिबरेलिंस नामक हार्मोन के छिड़काव द्वारा वृहद आकार के फल एवं फूलों का उत्पादन किया जाता है |
*एथिलीन एक ऐसा हार्मोन है, जो गैसीय रूप में पाया जाता है | यह फलों को पकाने में सहायता करता है |
*फ्लोरिजेंस नामक हार्मोन पत्ती में बनते हैं, लेकिन फूलों के खिलने मे मदद करता है| इसलिए इसे फूल खिलाने वाला हार्मोन कहते हैं |
*संसार मे सबसे लम्बा वृक्ष सिकोया है, यह एक नग्न बिजीय है | इसे कोस्ट रेड वुड आफ कैलिफोर्निया भी कहते हैं |
*सबसे बडा फल लोडोसिन है, इसे डबल कोकोनट भी कहते हैं | यह केरल मे पाया जाता है |
*सबसे छोटे गुणसूत्र शैवाल में एवं सबसे लम्बे ट्राइलियम में होते हैं |
*काफी मे कैफीन नामक तत्व पाया जाता है |
*चाय में कैफीन तथा टेनीन नामक तत्व पाया जाता है |
*अफीम पोपी के पौधे से प्राप्त की जाती है, इसमें मोपीन होती है |
*हिरोइन अफीम पोस्ता से प्राप्त की जाती है |
*लौंग फूल की कली से प्राप्त की जाती है |
*धान में खैरा रोग जस्ता की कमी से होता है |
*अफीम से हिरोइन, मारफीन एवं स्मैक प्राप्त किये जाते हैं |
*तम्बाकू में पाया जाने वाला उत्तेजक पदार्थ निकोटीन है |
*निद्राकारक दवा बार्बीट्यूरेट्स है |
कुछ फल एवं उनके खाने योग्य भाग
फल
|
खाने योग्य भाग
|
फल
|
खाने योग्य भाग
|
सेब
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पुष्पासन
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केला
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मध्य एवं अंत: भित्ती
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नाशपाती
|
पुष्पासन
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गेंहूँ
|
भ्रूणपोष एवं भ्रूण
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आम
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मध्य फल भित्ति
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चना
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बीज पत्र एवं भ्रूण
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अमरूद
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फलभित्ति,बीजाण्डसन
|
नारंगी
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जुसी हेयर
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अंगुर
|
फलभित्ति,बीजाण्डसन
|
नारियल
|
भ्रूण पोष
|
पपीता
|
मध्य फल भित्ती
|
काजू
|
पुष्प वृन्त,बीज पत्र
|
टमाटर
|
फल भित्ती,बीजाण्डसन
|
मूगफली
|
बीजपत्र एवं भ्रूण
|
*आस्ट्रिया के वैज्ञानिक ‘ग्रेगर जोहन मेंडल’ को आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है |
*आनुवंशिकी सम्बंधी प्रयोग के लिए मेंडल ने मटर के पौधे का चुनाव किया था
*जीन आनुवांशिकता की इकाई है तथा इन्ही के द्वारा मातृ-कोशिका से युग्मकों के द्वारा संतानों में आनुवंशिक लक्षणों का स्थानांतरण होता है |
*मनुष्य में गुण सूत्रों की संख्या 46 होती है |
*निषेचन के समय यदि अण्डाणु X गुण सूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो युग्मनज में 23 वीं जोड़ी XX होगी और इससे बनने वाली संतान लड़की होगी|
*इसके विपरीत किसी अण्डाणु से Y गुण सूत्र वाला शुक्राणु निषेचित होगा तो, 23 वीं जोड़ी XY गुण सूत्र वाला युग्मनज बनेगा तथा संतान लड़का होगा |
*नर में X एवं Y लिंग गुणसूत्र तथा मादा में दो X लिंग गुणसूत्र पाये जाते हैं | अत: पुरूष का गुणसूत्र संतान में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी होता है |
*गुणसूत्र का निर्माण डी.एन.ए. तथा प्रोटीन से होता है |
*उत्परिवर्तन का कारण जीन परिवर्तन होता है |
*जाति एवं गुणसूत्रों की संख्या : मटर - 14, मेंढक - 26, चूहा - 40,
मनुष्य - 46, चिम्पाजी - 48 |
*हीमोफीलिया : यह एक वंशानुगत रोग है, इस रोग से पीड़ित व्यक्ति में रक्त के जमने या थक्का बनने की क्षमता समाप्त हो जाती है |
*वर्णांधता : यह एक आनुवांशिक रोग है | इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति लाल एवं हरे रंग में भेद नहीं कर सकता है | यह लिंग सहलग्न रोग है | इसका जीन X गुणसूत्र पर होता है |
*वर्णांध पुरूष के X गुणसूत्र पर वर्णांधता का जीन होता है | यह जीन पिता से पुत्री में और पुत्री से बेटे में वंशागत होता है |
*सामान्य स्त्री एवं वर्णांध पुरूष की पुत्रियां वाहक होती हैं |
*वर्णांध पुरूष व सामान्य स्त्री की सभी संतानें सामान्य होती हैं | किंतु लड़कियां इसका वाहक होती हैं |
*वाहक स्त्री व सामान्य पुरूष की संतानों मे सभी लड़कियां सामान्य दृष्टि वाली होती हैं किंतु इनके पुत्रों में से आधे सामान्य और आधे वर्णांध होते हैं |
*वाहक स्त्री व वर्णांध पुरूष के 50% लड़के व लड़कियां सामान्य होते हैं और बाकी 50% वर्णांध होते हैं |
*वर्णांध स्त्री तथा सामान्य पुरूष की सभी लड़कियां वाहक तथा लड़के सभी वर्णांध होते हैं |
*जैव विकास के सिद्धांतों में लैमार्क का सिद्धांत, डार्विन का सिद्धांत तथा उत्परिवर्तन का सिद्धांत प्रमुख हैं |
*लैमार्क का सिद्धांत, जे.बी.डी.लैमार्क ने अपनी पुस्तक Philosophic Zoologique में प्रस्तुत कर बताया कि किसी भी जीव के विकास में वातावरण का प्रभाव, अंगों का उपयोग और अनुप्रयोग तथा उपार्जित लक्षणों की वंशागति का प्रभाव पड़ता है | इसे उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत भी कहते हैं |
*डार्विन वाद को चार्ल्स डार्विन ने प्रस्तुत किया | अपनी पुस्तक Origin of Species by Natural Selection में निम्न बिंदु प्रस्तुत किया- अत्यधिक संतान उत्पत्ति, जीवन संघर्ष, विभिन्नताएं तथा आनुवंशिकता, योग्यतम की उत्तरजीविता, वातावरण के प्रति अनुकुलन तथा नई जातियों की उत्पत्ति |
*डार्विन वाद को प्रकृति-वरण का सिद्धांत भी कहते हैं |
*ह्यूगो डी ब्रीज ने उत्परिवर्तन के सिद्धांत को प्रस्तुत किया | जीव जंतुओं में अचानक उत्पन्न होने वाले लक्षण उत्परिवर्तन कहलाते हैं |
*पुरानी जातियों से जीन परिवर्तन के कारण नयी जातियों की उत्पत्ति को नव डार्विन वाद कहते हैं |
*त्वचा मानव शरीर का सबसे बडा अंग है |
*त्वचा संवेदांग का भी काम करता है |
*त्वचा शरीर का बाह्यतम आवरण है |
*मेलेनिन नामक काले रंग का पदार्थ त्वचा को उसका रंग देता है तथा सूर्य के पराबैगनी किरणों को अवशोशित करके शरीर की रक्षा करता है
*मनुष्य मे दुग्ध ग्रंथि ‘स्वेद ग्रंथि’ की रूपांतरित रचना है |
*जीव कोशिका मे खाद्य (ग्लूकोस) का आक्सीजन की सहायता से आक्सीकरण होता है, इससे कार्बन डाई आक्साइड उत्पन्न होती है तथा ग्लूकोस से ऊर्जा मुक्त होती है |
*वायुमण्डल के वायु के फेफड़े में पहुंचने तथा अशुद्ध वायु के फेफडे से बाहर निकलने की क्रिया को श्वासोच्छवास क्रिया कहते हैं |
*श्वासोच्छवास मे वायु का मार्ग नासाद्वार - ग्रसनी – कण्ठ – श्वास नली – श्वसनिकाएं – कूपिकाएं होती हैं |
*मनुष्य मे श्वसन लेने की दर 18 बार प्रति मिनट होती है |
*वृषण मे टेस्टो-स्टीरोन तथा एण्ड्रो-स्टीरोन हार्मोन की उत्पत्ति के कारण ही नर में दाढी-मूछ का विकास, स्वभाव मे अंतर, नर जननांगों का विकास आदि लक्षण होते हैं
*अण्डाशयों द्वारा स्रावित एस्ट्रोजन हार्मोन के कारण स्त्री मे मासिक चक्र तथा स्तन ग्रंथियों के विकास मे सहायता मिलती है |
*अण्डाशयों मे ही प्रोजैस्टीरोन नामक हार्मोन की उत्पत्ति के कारण स्तनों की वृद्धि, गर्भाशय की रचना आदि का विकास होता है |
*पीयूष या पिट्यूटरी ग्रंथि को मास्टर ग्रंथि कहते हैं | पिट्यूटरी ग्रंथि मस्तिष्क मे होती है |
*केचुआ, हाइड्रा, तथा जोक मे एक ही जीव नर तथा मादा दोनों युग्मकों को उत्पन्न करता है | ऐसे जीवों को उभयलिंगी या द्विलिंगी कहते हैं |
*जंतुओं मे युग्लीना स्वपोषी है | इसकी कोशिका में पर्णहरिम पाया जाता है | यह भी पौधों की भांति प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाता है |
*श्वसन मे बाहर निकली वायु मे आक्सीजन की मात्रा 17% तथा कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा 4% होती है |
*प्रकाश संश्लेषण में उत्पन्न होने वाली आक्सीजन जल से निकलती है |
*पौधों मे श्वसन की क्रिया दिन व रात दोनों मे होती है |
*प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पौधे जो प्रथम खाद्य पदार्थ बनाते हैं वह शर्करा होता है |
*रसारोहण द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवण जाइलम ऊतक के द्वारा पत्तियों तक पहुंचते हैं |
*निषेचन के बाद अण्डाशय फल मे बदल जाता है |
*मानव शरीर मे मांसपेशियों की संख्या 639 होती है |
*मानव शरीर की सबसे बड़ी मांसपेशी कुल्हा की मांसपेशी है |
*मानव शरीर की सबसे छोटी मांसपेशी स्टैपिडियस है |
*शरीर मे भोजन का पाचन मुख से प्रारम्भ होता है |
*पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आंत मे होता है |
*भोजन के पाकाशय मे पहुंचते ही सबसे पहले इसमे यकृत से निकलने वाला पित्त रस आकर मिलता है |
*पित्त रस क्षारीय होता है, यह रस हरा-पीला होता है | यह भोजन को अम्लीय से क्षारीय बना देता है |
*यकृत की कोशिकाओं से पित्त रस का स्रावण होता है तथा पित्ताशय में एकत्रित होता है |
*मानव शरीर की सबसे बडी ग्रंथि यकृत (Liver) है |
*मानव शरीर की सबसे छोटी ग्रंथि पिट्यूटरी ग्रंथि (मास्टर ग्रंथि) है |
*शरीर के ताप को हाइपो-थैलम ग्रंथि नियंत्रित करती है |
*फाइब्रिनोजेन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत से ही होता है; जो रक्त का थक्का बनने मे मदद करता है |
*हिपैरीन नामक प्रोटीन का उत्पादन यकृत के द्वारा होता है, जो शरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता है |
*मृत RBC को नष्ट करने का कार्य यकृत द्वारा किया जाता है |
*भोजन मे जहर दे कर मारे गये व्यक्ति की मृत्यु के कारणों की जांच मे यकृत एक महत्वपूर्ण सुराख होता है |
*पित्त भोजन के साथ आये हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है |
*यकृत यूरिया निर्माण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है | यकृत एक उत्सर्जी अंग है |
*यकृत मे विटामिन ए का संग्रह होता है |
*पैरोटिड ग्रंथि में संक्रमण होने (फूलने) से मनुष्य में गलसुआ रोग हो जाता है |
*वृहद आंत्र मे अपचा भोजन मल के रूप मे बदलता है |
*मल मे बदबू इंडोल तथा स्कैटोल नामक रसायन के कारण होती है |
*मनुष्य के अग्नयाशय मे इंसुलिन का निर्माण होता है |
*शरीर की सबसे बड़ी पाचक ग्रंथि यकृत है |
*जठर रस आमाशय से निकलता है |
*अमोनिया का यूरिया मे परिवर्तन यकृत मे होता है |
*मनुष्य मे लार ग्रंथियों की संख्या तीन जोड़ी होती है |
*मनुष्य मे 12 जोड़ी कपाल तंत्रिकाएं और 31 जोड़ी मेरूरज्जु तंत्रिकाएं पायी जाती हैं |
*मनुष्य के शरीर मे हड्डियों की संख्या 206 तथा पसलियों की संख्या 24 होती है |
*मनुष्य की खोपडी मे 8 हड्डियां पायी जाती हैं |
*शरीर की सबसे मजबूत हड्डी जबड़ा की हड्डी होती है |
*शरीर की सबसे बड़ी हड्डी फीमर (जांघ की हड्डी) होती है |
*शरीर के सबसे छोटी हड्डी स्टेप्स (कान की हड्डी) होती है |
*STH हार्मोन (Somoto Tropic Hormone) शरीर की वृद्धि, विशेषतया हड्डियों की वृद्धि को नियंत्रित करता है |
* STH की अधिकता से भीमकायत्व विकार उत्पन्न हो जाते हैं | STH की कमी से मनुष्य में बौनापन हो जाता है |
*LHT हार्मोन (Lactogenic Hormone) को दुग्ध जनक हार्मोन कहते हैं | इसका मुख्य कार्य शिशु के लिए स्तनों मे दुग्ध स्राव उत्पन्न करना होता है |
*मल्टोज शर्करा को ग्लूकोज में बदलता है |
*कार्बोहाइड्रेट शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है |
*एक ग्राम बसा से 9.3 किलो कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न होती है |
*शरीर मे जल का भार 65 – 80% होता है |
*हड्डियों एवं दातों को स्वस्थ रखने में सहायक अकार्बनिक पदार्थ फ्लुओरीन होता है |
*मूत्र का रंग पीला यूरोक्रोम के कारण होता है |
*थाइराइड ग्रंथि गले में पायी जाती है |
*सभी मानसिक क्रियाओं का नियंत्रण प्रमस्तिष्क (मस्तिष्क के अगले भाग) में होता है |
*सामान्य ऐच्छिक क्रियाओं जैसे- चलना-फिरना, बोलना का नियंत्रण अनुमस्तिष्क (मस्तिष्क के पिछले भाग) मे होता है |
*मनुष्य के मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग प्रमस्तिष्क होता है |
*शरीर मे रक्त परिभ्रमण मे 23 सेकेण्ड का समय लगता है |
*तत्काल ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कार्बोहाइड्रेट लिया जाता है |
*केचुए में 4 जोडी हृदय होते हैं | इसके जीव द्रव्य मे हीमोग्लोबिन का विलय होता है |
*रक्त एक सरल संयोजी ऊतक है |
*रूधिर का कार्य आक्सीजन को फेफड़ों से शरीर के सभी भागों में पहुंचाना तथा कार्बन डाई आक्साइड को शरीर के भागों से फेफड़े तक लाना है |
*रक्त एक क्षारीय विलयन है, इसका PH मान 7.4 होता है |
*मानव शरीर में रक्त की मात्रा शरीर के भार का लगभग 7 से 8% तक होती है|
*महिलाओं मे पुरूषों की तुलना मे आधा लीटर कम रक्त होता है |
*पचे हुए भोजन एवं हार्मोन का शरीर में संवहन प्लाज्मा के द्वारा होता है |
*लाल रक्त कण (RBC) का जीवन काल 100 से 120 दिन का होता है | इसमें हीमोग्लोविन होता है जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है
*हीमोग्लोबिन मे पाया जाने वाला लौह यौगिक हीमैटिन है |
*RBC का मुख्य कार्य शरीर की हर कोशिका मे आक्सीजन पहुंचाना तथा कार्बन डाई आक्साइड बाहर लाना है |
*हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने पर रक्त क्षीणता (एनीमिया) नामक रोग हो जाता है |
*रक्त शरीर के ताप का नियंत्रण तथा शरीर को रोगों से रक्षा करने का कार्य करता है |
*रक्त का थक्का बनने के लिए अनिवार्य प्रोटीन फाइब्रिनोजन है |
*श्वेत रूधिर कणिकाएं हानिकारक जीवाणुओं एवं विषाणुओं का भक्षण करती हैं
*रूधिर की प्लेट्लेट्स कणिकाएं स्थान या घाव पर रूधिर का थक्का बनाकर उसकी रक्षा करती हैं |
*रूधिर शरीर मे जल संतुलन को बनाये रखता है |
*रक्त समूह की खोज कार्ल लैंड स्टीनर ने किया था | इसके लिए 1930 ई. में उन्हे नोवेल पुरस्कार मिला |
*मनुष्य के रक्तों की भिन्नता का मुख्य कारण लाल रक्त कण (RBC) मे पायी जाने वाली ग्लाइको प्रोटीन है, जिसे एण्टीजन कहते हैं
*जिसमे दोनों (A तथा B) मे से कोई एण्टीजन नहीं होता है, वह रूधिर वर्ग O कहलाता है
*रक्त समूह O को सर्वदाता रक्त समूह कहते हैं |
*रक्त वर्ग A B को सर्वग्रहता रक्त समूह कहते हैं, क्योंकि इसमे कोई एण्टीबाडी नही होता है |
रूधिर वर्ग
|
एण्टीजन (RBC मे)
|
एण्टीबाडी (प्लाज्मा मे)
|
A
|
केवल A
|
केवल b
|
B
|
केवल B
|
केवल a
|
AB
|
A,B दोनों
|
कोई नहीं
|
O
|
कोई नहीं
|
a एवं b दोनों
|
*इंसुलिन ग्लुकोज से ग्लाइकोजिन बनाने की क्रिया को नियंत्रित करता है |
*इंसुलिन के अल्प स्रवण से मधुमेह नामक रोग होता है |
*रूधिर मे ग्लूकोज की मात्रा बढ़ना मधुमेह कहलाता है |
*शरीर से हृदय की ओर रक्त ले जाने वाली रक्त वाहिनी को ‘शिरा’ कहते हैं |
*शिरा मे अशुद्ध रक्त अर्थात कार्बन डाई आक्साइड युक्त रक्त होता है | इसका अपवाद पल्मोरीन शिरा है |
*पल्मोरीन शिरा फेफडे से बायें अलिंद मे रक्त को ले जाती है , इसमे शुद्ध रक्त होता हैं |
*हृदय से शरीर की ओर रक्त ले जाने वाली रक्त वाहिनी को धमनी कहते हैं, धमनी मे शुद्ध रक्त अर्थात आक्सीजन युक्त रक्त होता है | इसका अपवाद पल्मोनरी धमनी है, पल्मोनरी धमनी दाहिने निलय से फेफड़े मे रक्त पहुंचाती है , इसमे अशुद्ध रक्त होता है |
*हृदय के दायें भाग मे अशुद्ध रक्त तथा बायें भाग मे शुद्ध रक्त होता है |
*शरीर से अशुद्ध रक्त दाया अलिंद से दाया निलय फिर फेफडे मे जाता है |
*शुद्ध रक्त फेफडे से बायां अलिंद,बायां अलिंद से बायां निलय फिर शरीर मे प्रवेश करता है |
*हृदय की मांसपेशियों को रक्त पहुंचाने वाली वाहिनी को कोरोनरी धमनी कहते हैं | इसी मे किसी प्रकार की रूकावट होने पर हृदयाघात होता है |
*सामान्य अवस्था मे मनुष्य का हृदय एक मिनट मे 72 बार (भ्रूण अवस्था मे 150 बार) धड़कता है तथा एक धड़कन मे लगभग 70 मि.ली. रक्त पम्प करता है |
*रूधिर मे उपस्थित कार्बन डाई आक्साइड रूधिर के PH को कम करके हृदय की गति को बढाता है, अर्थात अम्लीयता हृदय की गति को बढाती है तथा क्षारीयता हृदय की गति को कम करती है |
*वृक्कों को रूधिर की आपूर्ति अन्य अंगों की तुलना मे बहुत अधिक होती है |
*वृक्क का मुख्य कार्य उत्सर्जन करना होता है |
*परजीवी जंतुओं को आहार पचाने की आवश्यकता नही होती क्योंकि वे पचा-पचाया भोजन अपने पोषक की आतों या अन्य स्थानों मे रहकर शोषित करते हैं | इस प्रकार के परजीवी का उदाहरण फीताकृमि है |
*विटामिन की खोज फंक ने किया |
*विटामिन : विटामिंस जटिल कार्बनिक पदार्थ होते हैं | इनकी थोडी सी मात्रा शरीर की उपापचयी क्रियाओं को नियंत्रित करती है |
*जल मे घुलनशील विटामिंस : B तथा C
*वसा मे घुलनशील विटामिंस : A, D, E, K
*विटामिनों का संश्लेषण हमारे शरीर की कोशिकाओं द्वारा नहीं हो सकता, इसकी पूर्ति विटामिंस युक्त भोजन से होती है | विटामिन D तथा K का संश्लेषण हमारे शरीर द्वारा होता है |
विटामिंस तथा इनकी कमी से होने वाले रोग
विटामिंस
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कमी से होने वाला रोग
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विटामिन A
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रतौधी, संक्रमण रोगों का खतरा
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विटामिन B1
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बेरी-बेरी
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विटामिन B2
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त्वचा का फटना, आंख लाल होना, जीभ मे सूजन
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विटामिन B3
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बाल सफेद होना, मंद बुद्धि
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विटामिन B6
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रक्ताल्पता
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विटामिन B7
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लकवा, बालों का गिरना
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विटामिन B12
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एनीमिया, पीलिया
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विटामिन C
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स्कर्वी, मसूडों का फूलना, भार मे कमी
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विटामिन D
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रिकेट्स (बच्चों में), आस्टियोमलेशिया (वयस्कों में)
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विटामिन E
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जनन शक्ति का कम होना
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विटामिन K
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रक्त का थक्का न बनना |
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कुछ प्रमुख विटामिंस एवं स्रोत :
विटामिन
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स्रोत
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विटामिन A
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गाजर, चुकंदर, शलजम, टमाटर, साबुत अनाज, पीले या नारंगी फल, हरी सब्जियां, पपीता, तरबूज, अण्डा आदि |
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विटामिन B
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टमाटर, अण्डे की जर्दी, साग, पौधों के बीज, दही, दूध, ताजे मटर, बंद गोभी आदि |
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विटामिन C
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खट्टे रसदार फल जैसे आंवला, नींबू, नारंगी, संतरा, अंगूर, केला, बेर, मूली के पत्ते आदि |
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विटामिन D
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धूप, दूध और अनाज आदि |
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विटामिन E
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वनस्पति तेल, हरी साग – सब्जियां, अण्डा आदि |
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कुछ प्रमुख विटामिंस एवं उनके रासायनिक नाम :
विटामिन
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रासायनिक नाम
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विटामिन
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रासायनिक नाम
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विटामिन A
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रेटिनॉल
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विटामिन C
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एस्कॉर्बिक एसिड
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विटामिन B1
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थॉयमिन
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विटामिन D
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कैल्सिफेरॉल
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विटामिन B2
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राइबोफ्लेविन
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विटामिन E
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टेकोफेरॉल
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विटामिन B3
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निकोटिनैमाइड
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विटामिन K
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फिलोक्विनोन
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*फोलिक एसिड की कमी से एनीमिया रोग हो जाता है |
*घेंघा रोग भोजन मे आयोडीन की कमी से होता है | इस रोग मे थाइरायड ग्रंथि के आकार मे वृद्धि हो जाती है |
*कार्टेक्स के विकृत हो जाने पर उपापचयी प्रक्रमों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है | इस रोग को एडीसन रोग कहते हैं |
*कार्बोहाइड्रेट : कार्बन, हाइड्रोजन एवं आक्सीजन के 1:2:1 के अनुपात से मिलकर बने कार्बनिक पदार्थ कार्बोहाइड्रेट कहलाते हैं | शरीर की ऊर्जा की आवश्यकता की 50 से 75% मात्रा की पूर्ति इन्ही पदार्थों द्वारा की जाती है |
*एक ग्राम ग्लूकोज के पूर्ण आक्सीकरण से 4.2 किलो कैलोरी ऊर्जा उत्पन्न होती है |
*प्रोटीन : प्रोटीन शारीरिक वृद्धि के लिए आवश्यक है | इसकी कमी से शारीरिक विकास रूक जाता है | बच्चों में इसकी कमी से क्वाशियोर्कर एवं मरस्मस रोग हो जाता है |
*क्वाशियोर्कर रोग में बच्चों का हाथ-पांव दुबला-पतला हो जाता है एवं पेट बाहर की ओर निकल जाता है |
*मरस्मस रोग मे बच्चों की मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं |
*वसा : वसा सामान्यतया 20’C पर ठोस अवस्था मे होते हैं, परंतु यदि वे इस ताप पर द्रव अवस्था में हो तो उन्हे तेल कहते हैं |
*शरीर मे वसा का संश्लेषण माइटोकांड्रिया मे होता है |
*वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है तथा शरीर के विभिन्न अंगों को चोटों से बचाती है | वसा की कमी से त्वचा रूखी हो जाती है, वजन मे कमी आती है एवं शरीर का विकास रूक जाता है |
*वसा की अधिकता से शरीर स्थूल हो जाता है, हृदय की बीमारी हो जाता है एवं रक्त चाप बढ़ जाता है |
*कैल्सियम : यह विटामिन के साथ मिलकर हड्डियों एवं दांतों को मजबूती प्रदान करता है |
*फास्फोरस : यह कैल्सियम से सम्बद्ध होकर दातों तथा हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है |
*लौह : लोहा लाल रूधिर कणिकाओं में हीमोग्लोविन के बनने के लिए तथा ऊतक मे आक्सीकरण के लिए आवश्यक है |
*आयोडीन : यह थाइराइड ग्रंथि द्वारा स्रावित हार्मोन के संश्लेषण के लिए आवश्यक है |
*गर्भवती स्त्रीयों के लिए प्राय: कैल्शियम और आयरन की आवश्यकता होती है
*दूध को संतुलित आहार नही माना जाता क्योंकि इसमे आयरन एवं विटामिन सी की कमी होती है |
*खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिए सोडियम बेंजोएट का प्रयोग किया जाता है |
*लार मे मुख्य रूप से पाया जाने वाला एंजाइम टायलिन है |
*लार का PH मान 6.5 होता है तथा प्रकृति अम्लीय होती है |
*दूध को फाड़ने या थक्का बनाने का कार्य रेनिन करता है |
*रूधिर मे शर्करा की मात्रा को इंसुलिन नियंत्रित करता है |
*मानव शरीर मे सामान्य रक्त दाब 120/80 होता है |
*WBC का मुख्य कार्य शरीर को रोगों के संक्रमण से बचाना होता है |
*RBC का मुख्य कार्य शरीर की हर कोशिका मे आक्सीजन को पहुंचाना होता है |
*WBC का निर्माण तथा RBC का विनाश प्लीहा मे होता है |
*लाल रक्त कणिकाओं का कब्रगाह प्लीहा को कहते हैं |
*रक्त के शुद्धिकरण का कार्य फेफड़ा करता है |
*शुद्ध जल का PH मान 7.0 तथा समुद्री जल का PH मान 8.4 और दूध का PH मान 6.4 होता है |
*बैक्टिरिया की खोज ल्यूवेन हाक ने की |
*शरीर का सबसे कठोर तत्व एनामिल (दातों के ऊपर) होता है |
*आखों मे बाहर से पड़ने वाले प्रकाश को आइरिस नियंत्रित करता है |
*शरीर मे कोलोस्ट्राल की अधिकता के कारण हृदयाघात होता है |
*इंसुलिन की कमी से डायबिटिज रोग होता है |
*हल्का कार्य करने वाले पुरूष को 2000 कैलोरी, 8 घण्टा कार्य करने वाले पुरूष को 3000 कैलोरी एवं कठिन परिश्रम करने वाले पुरूष को 3600 कैलोरी भोजन की आवश्यकता होती है |
*विषाणु (Virus) अथवा परजीवि (Protozoa) को सजीव एवं निर्जिव के बीच की कडी कहते है | विषाणु को महीन चूर्ण के रूप मे शीशी मे बंद करके असीमित समय तक रखा जा सकता है |
*विषाणु निर्जीव होते हैं | विषाणु कोशिकाओं मे द्विगुणन करते हैं |
*विषाणु का संघटन RNA अथवा DNA तथा प्रोटीन से होता है |
*स्वतंत्र विषाणु पोषण, श्वसन, वृद्धि एवं विखण्डन नही करते हैं |
*विषाणुओं द्वारा उत्पन्न होने वाले कुछ रोग हैं- जुकाम, इंफ्लुएंजा, खसरा, पोलियो, चेचक, पीलिया, एड्स, रेबीज, मलेरिया, पायरिया, पेचिश, काला-जार आदि |
*तम्बाकू का मोजैक रोग विषाणु द्वारा होता है |
*अब तक ज्ञात एक-कोशकीय जीवधारीयों मे जीवाणु (Bacteria) सरलतम जीवधारी है |
*जैव पदार्थों का सड़ना तथा क्षय होना,प्रकृति मे जीवाणुओं का महत्वपूर्ण कार्य है |
*कुछ विशेष प्रकार के जीवाणु दलहनी पौधों की जड़ों मे स्थित छोटी-छोटी गाठों मे पाये जाते हैं , ये जीवाणु वायु से नाइट्रोजन ले कर उसे जल मे विलेय नाइट्रेट लवणों मे परिवर्तित कर देते हैं |
*घरों मे दूध मे उपस्थित शर्करा को कैक्टिन एसिड मे बदल कर दही बनाने के लिए भी जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है |
*दूध का फटना, मक्खन से दुर्गंध आना, डिबा मे बंद या खुली सामाग्री का सड़ना, अचार, मुरब्बा आदि का खराब होना आदि जीवाणु जनित क्रियायें होती हैं
*नीबू का कैंकर रोग, आलू का स्कैब, सेब एवं नाशपाती की अंगमारी, तम्बाकू का विल्ट आदि जीवाणु जनित रोग हैं |
*मनुष्यों मे होने वाले कुछ जीवाणु जनित रोग- क्षय, हैजा, डिप्थीरिया, टायफाइड, न्यूमोनिया, टिटनेस (धनु रोग), काली खांसी, सिफलिस आदि हैं |
कुछ प्रमुख रोग एवं उससे प्रभावित अंग
रोग
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प्रभावित अंग
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रोग
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प्रभावित अंग
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मलेरिया
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तिल्ली एवं RBC
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डिप्थिरिया
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श्वास नली
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जुकाम
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श्वसन मार्ग
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काली खांसी
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श्वसन तंत्र
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खसरा
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श्वसन मार्ग
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क्षय रोग
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फेफड़ा
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इंफ्लुएंजा
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श्वसन मार्ग
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निमोनिया
|
फेफड़ा
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चेचक
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त्वचा,श्वसन मार्ग
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सिफलिस
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शिश्न
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पीलिया
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यकृत
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पायरिया
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मसूढ़े
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एड्स
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प्रतिरक्षा तंत्र
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टायफाइड
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आंत
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रेबीज
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केंद्रीय तंत्रिका तंत्र
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पेचिस
|
आंत
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टिटनेस
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तंत्रिका तंत्र
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हैजा
|
आंत
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पोलियो
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निगल द्वार,आंत,रीढ़ रज्जु
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हेपेटाइटिस
|
यकृत
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*फाइलेरिया रोग के कृमि का संचरण क्यूलेक्स मच्छरों के दंस से होता है | इस रोग मे पैरों, वृषण कोषों तथा शरीर के अन्य भागों मे सूजन हो जाती है | इसे हाथी पांव भी कहते हैं |
*दमा एक संक्रामक रोग है |
*एड्स HIV नामक वाइरस से फैलता है | AIDS= Acquired Immuno Deficienoy Syndrome .
*डेंगू ज्वर मादा मच्छर के काटने से होता है |
*चिकन गुनिया दुर्बल बनाने वाली गैर घातक बीमारी है | यह मच्छर के काटने से फैलता है | मनुष्य ही इसके वाइरस का मुख्य स्रोत है | मच्छर संक्रमित व्यक्ति को काटकर अन्य व्यक्ति को काटता है जिससे यह बीमारी फैलती है |
*वर्णांधता तथा हीमोफिलिया से मुख्यत: पुरूष प्रभावित होते हैं | इन रोगों की वाहक स्त्रियां होती हैं |
*पटाऊ सिंट्रोम के रोगी का ऊपर का होठ बीच से फट जाता है तथा तालु मे दरार हो जाती है |
बीमारियों से बचाव के लिए लगने वाले टीके :
टीका
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बीमारी
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बी.सी.जी.
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तपेदिक (क्षय या टी.बी.) रोग से बचाव के लिए
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ओ.पी.वी.
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पोलियो से बचाव के लिए
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डी.टी.
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टिटनेस और डिप्थीरिया से बचाव के लिए
|
डी.पी.टी
|
टिटनेस और डिप्थीरिया से बचाव के लिए
|
टी.टी
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टिटनेस से बचाव के लिए, गर्भवती महिलाओं को |
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