भौतिक विज्ञान (PHYSICS)

тнαηкѕ ƒσя ѕυρρσят υѕ ραη∂ιт ѕнуαм ηαяαуαη тяιραтнι @яυ∂яαgσƒƒι¢ιαℓ яυ∂яαкѕн ѕαη∂ιℓуα 9453789608 ραη∂ιт ѕнуαм ηαяαуαη тяιραтнι ѕαη∂ιℓуα
*भौतिक विज्ञान; विज्ञान की वह शाखा है, जिसमे द्रव्य, ऊर्जा और उसकी परस्पर क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है | भौतिक विज्ञान प्रकृति जगत का मूल विज्ञान है |
*CGS पद्धति : इसे फ्रेंच या मीट्रिक पद्धति भी कहते हैं, इसमे दूरी का मात्रक सेमी., द्रव्यमान का मात्रक ग्राम, समय का मात्रक सेकेंड होता है |
*FPS पद्धति : इसे ब्रिटिश पद्धति भी कहते हैं, इसमें दूरी का मात्रक फूट, द्रव्यमान का मात्रक पाउण्ड, तथा समय का मात्रक सेकेण्ड होता है |
*MKS पद्धति : इसमें दूरी का मात्रक मीटर, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम, तथा समय का मात्रक सेकेंड होता है |
*SI पद्धति : इस पद्धति में सात मूल मात्रक, तथा दो सहायक मात्रक होते हैं |
*विज्ञान में 7 मूल राशियां लम्बाई या दूरी, द्रव्यमान, समय, ताप, विद्युत धारा, ज्योति तीव्रता, तथा पदार्थ की आणविक मात्रा निर्धारित की गयी हैं तथा इन राशियों के मात्रक मानक रूप मे निश्चित किये गये हैं | इन मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं |  
*जिन मात्रकों मे दो या दो से अधिक मूल मात्रकों का समावेश होता है उन्हे व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं |
*रेडियन तथा स्टेरेडियन को पूरक मात्रक कहते हैं | रेडियन कोण का तथा स्टेरेडियन घन कोण अथवा ठोसीय कोण का मात्रक है |
*राशियां तथा उनके मात्रक :
राशि
एस.आई. मात्रक
लम्बाई
मीटर
द्रव्यमान
किलो ग्राम
समय
सेकेण्ड
ताप
केल्विन या डिग्री सेल्सियस
विद्युत धारा
एम्पियर
ज्योति तीव्रता
कैंडिला
आणविक मात्रा
मोल
समतल कोण
रेडियन
घन कोण
स्टेरेडियन
कार्य तथा ऊर्जा
जूल
बल
न्यूटन
तरंग दैर्ध्य
ऐंग्स्ट्राम
आयतन
घन मीटर
चाल
मी./से.
कोणीय वेग
रेडियन/से
आवृत्ति
हर्टज
दाब
पास्कल
शक्ति
वाट
विद्युत आवेश
कुलाम
विभवांतर
वोल्ट
विद्युत प्रतिरोध
ओम

*बल का सी.जी.एस. पद्धति में मात्रक डाइन, एवं एस.आई. पद्धति मे मात्रक न्यूटन है | 1 न्यूटन = 105 डाइन  |
*कार्य का सी.जी.एस. पद्धति मे मात्रक अर्ग, एवं एस.आई. पद्धति मे मात्रक जूल है | 1 जूल = 107 अर्ग |
*आवृति का एस.आई. मात्रक कम्पन प्रति सेकेंड/हर्टज होता है |
*भार का मात्रक न्यूटन एवं द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम होता है | 
*माइक्रान अत्यंत सूक्ष्म वस्तुओं जैसे जैव कोशिका की माप को व्यक्त करने के लिए उपयोग मे लाया जाता है |
*ऐंग्स्ट्राम मात्रक का उपयोग प्रकाश तरंगों, तरंग दैर्ध्य, अणुओं तथा परमाणुओं के आकार को व्यक्त करने में किया जाता है |
*1माइक्रान = 10-6 मीटर |
*1 ऐंग्स्ट्राम = 10-10 मीटर
*1 पाउण्ड = 453 ग्राम |
*1 फुट = 30.48 से.मी. |
*1 नैनो सेकेंड = 10-9 सेकेंड |
*प्रकाश वर्ष दूरी का मात्रक है | निर्वात मे प्रकाश तरंगों द्वारा 1 वर्ष मे चली गई दूरी को 1 प्रकाश वर्ष कहते हैं |
*निर्वात मे प्रकाश की चाल 3x108 मीटर/सेकेंड होती है |
*1 प्रकाश वर्ष = 9.461x1015 मीटर = 1016 मीटर (लगभग) = 9.46x1012 किलो.मीटर |
*दूरी मापने की सबसे बडी इकाई पारसेक होती है |
*1 पारसेक = 3.084x1013 किलो.मीटर = 3.084x1016 मीटर = 3.26 प्रकाश वर्ष |                                                                                               
*मात्रक को बहुबचन मे नहीं लिखा जाता है | अंग्रेजी मे लिखते समय मात्रकों को कैपिटल अक्षर से प्रारम्भ नहीं किया जाता | मात्रकों के सामान्य प्रतीक भी कैपिटल अक्षरों मे नहीं होते, परंतु वैज्ञानिकों के नाम वाले मात्रकों के प्रतीक कैपिटल अक्षरों मे लिखे जाते हैं |
*1 ऐंग्स्ट्राम = 10-4 माइक्रान , 1 नैनो मीटर = 10-9 मीटर |
*सामान्य मीटर स्केल का अल्पतमांक 1 मिली मीटर तथा वर्नियर कैलिपर्स का अल्पतमांक 0.1 मिमी अथवा 0.01 सेमी होता है |
*किसी भौतिक राशि मे सार्थक अंको की संख्या जितनी अधिक होती है उसके मान मे प्रतिशत त्रुटि उतनी ही कम होती है |
 *अदिश राशि : ऐसी भौतिक राशि, जिनमे केवल परिमाण होता है ; दिशा नहीं, उसे अदिश राशि कहा जाता है | उदाहरण : दूरी, आयतन, द्रव्यमान, घनत्व, दाब, कार्य, ऊर्जा, विद्युत-आवेश, विभव, विद्युत-धारा, प्रतिरोध, सामर्थ्य, ताप आदि |
*सदिश राशि : ऐसी भौतिक राशि, जिसमे परिमाण के साथ-साथ दिशा बताना आवश्यक होता है, और वे योग के निश्चित नियमों के अनुसार जोडी जाती हैं, उन्हे सदिश राशि कहते हैं | उदाहरण : विस्थापन, वेग, संवेग, बल, त्वरण आदि |
*विस्थापन : एक निश्चित दिशा मे दो बिंदुओं के बीच की न्यूनतम दूरी को विस्थापन कहते हैं | यह सदिश राशि है, इसका एस.आई. मात्रक मीटर है | विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक एवं शून्य भी हो सकता है |
*चाल : इकाई समय में चली गई दूरी को चाल कहते हैं | यह अदिश राशि है, इसका मात्रक मी/से. होता है | यह धनात्मक होता है |
*वेग : इकाई समय में निश्चित दिशा में तय की गई दूरी को वेग कहते हैं, यह सदिश राशि है, इसका मात्रक मी/से. होता है | यह धनात्मक, ऋणात्मक तथा शून्य भी हो सकता है |
*त्वरण : किसी वस्तु के वेग मे परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं | यह एक सदिश राशि है | इसका एस. आई. मात्रक मी./से2 होता है | यदि समय के साथ-साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, इसे मंदक कहते हैं | त्वरण का सूत्र a = u + vt होता है |
*किसी पिंड का त्वरण शून्य होगा यदि वस्तु का समान समय में विस्थापन समान हो |
*ऊपर फेकी जाने वाली वस्तु का त्वरण ऋणात्मक होता है |
*विराम : जब किसी पिंड की स्थिति किसी निर्दिष्ट बिंदु के सापेक्ष समय के साथ नहीं बदलती हैं, तब वह पिंड स्थिर या विराम में कहलाता है |
*गति : जब किसी पिंड की स्थिति किसी निर्दिष्ट बिंदु के सापेक्ष समय के साथ बदलती हैं, तब वह पिंड गतिमान या गति में कहलाता है |
*रैखिक गति : जब कोई वस्तु किसी सरल रेखा में गमन करता है, तब उस गति को रैखिक गति कहते हैं, जैसे ट्रेन की गति |
*आवर्ती गति : जब कोई वस्तु निश्चित समयांतराल में अपनी गति को बार बार दुहराता है तो उसे आवर्ती गति कहते हैं,जैसे पृथ्वी की गति, पेंडूलम की गति आदि | 
*दोलन गति : जब कोई वस्तु किसी निश्चित बिंदु के आगे पीछे गति करता है, इसे दोलन गति कहते हैं, जैसे झूले की गति, पेंडूलम की गति आदि |
*वृत्तीय गति : जब कोई वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है तो उसकी गति को वृत्तीय गति कहते हैं | जैसे पृथ्वी की गति, नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रान की गति |
*एक समान वृत्तीय गति में चाल अचर एवं वेग चर होता है |
*कोणीय वेग : वृत्ताकार मार्ग पर गतिशील कण को वृत्त के केंद्र से मिलाने वाली रेखा एक सेकेंड में जितने कोण से घूम जाती है, उसे उस कोण का कोणीय वेग कहते हैं | इसे (ओमेगा) से प्रकट करते हैं |
*गति के समीकरण : (1)    v = u+at       (2)   s = ut + at2            (3)  v2 = u2 + 2as  ( जहां u=प्रारम्भिक वेग, v=अंतिम वेग, a=त्वरण,एवं s=t सेकेंड में चली गई दूरी |
*समुद्र की गहराई फैदम में तथा दूरी नाटिकल मील द्वारा मापा जाता है |
*यदि डोरी की लम्बाई  तथा गुरूत्वीय त्वरण g हो, तो सरल लोलक का आवर्तकाल T = 2  होता है |
*यदि लोलक की लम्बाई 4 गुनी कर दी जाए तो, लोलक झूलने का समय 2 गुना हो जायेगा |
*लोलक की लम्बाई बढ़ने पर आवर्त काल बढ़ जायेगा | यहीं कारण है कि यदि कोई व्यक्ति झूला खूलने के क्रम में खड़ा हो जाये तो उसका गुरूत्व केंद्र ऊपर उठ जाता है जिसके फलस्वरूप लम्बाई घट जायेगी इस कारण आवर्त्तकाल घट जाएगा, अर्थात् झूला जल्दी-जल्दी दोलन करेगा |
*लोलक को पृथ्वी से ऊपर या नीचे ले जाने पर आवर्त्त काल बढ़ जाता है, क्योंकि गुरूत्वीय त्वरण कम हो जाता है |
*लोलक घड़ी को उपग्रह में ले जाने पर आवर्तकाल अनंत हो जाता है (क्योंकि g = 0), इस कारण लोलक घड़ी काम नहीं करेगी |
*चंद्रमा पर लोलक घड़ी का आवर्तकाल बढ़ जाता है, क्योंकि g का मान घट जाता है |
*गर्मी में लोलक की लम्बाई बढ़ जाती है इस कारण आवर्त्तकाल बढ़ जाता है, अत: घड़ी सुस्त हो जाती है |
*जाड़े में लोलक की लम्बाई घट जाती है इस कारण आवर्त्तकाल घट जाता है, अत: घड़ी तेज हो जाती है |
*पृथ्वी के केंद्र में g का मान शून्य होता है, अत: पेंडुलम वाली घड़ी का आवर्तकाल अनंत हो जाता है, अत: घड़ी काम नहीं करेगी |
*झूले पर एक व्यक्ति की जगह दो व्यक्ति बैठ जायें, तो इसका आवर्तकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि आवर्तकाल द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है |
*K बल नियतांक के एक स्प्रिंग को दो समान भागों में काट दिया जाये तो प्रत्येक भाग का बल नियतांक  2K होगा |
*सरल आवर्त गति में गतिशील कण के महत्तम विस्थापन पर त्वरण का मान शून्य होता है |
*सरल आवर्त गति की गतिज ऊर्जा प्रत्येक आवर्त में दो बार शून्य होती है |
*सेकेंड लोलक का चंद्रमा पर आवर्तकाल 5 सेकेंड होगा |
*दोलन करते लोलक की स्थितिज ऊर्जा चरमावस्था पर अधिकतम होगी |
*किसी पेंडुलम की लम्बाई दुगनी कर देने पर उसका आवर्तकाल गुना बढ़ जायेगा |
*सेकेंड पेंडुलम का आवर्तकाल 2 सेकेंड होता है |
*चद्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है, चंद्रमा की यह गति आवर्त गति कहलाती है |
* भौतिकी के पिता न्यूटन ने सन 1686 ई. में अपनी पुस्तक प्रिंसिपिया में सबसे पहले गति के नियमों का प्रतिपादन किया |
*न्यूटन का प्रथम गति नियम : प्रत्येक वस्तु अपनी यथा स्थिति में तब तक बनी रहती है, जब तक कोई असंतुलित बल लगाकर उसकी स्थिति मे परिवर्तन के लिए बाध्य न किया जाये | इसे गैलिलियो का जड़त्व नियम भी कहा जाता है | न्यूटन का प्रथम गति नियम बल को परिभाषित करता है |
*जड़त्व : किसी द्रव्यात्मक वस्तु का वह गुण जिससे कि वस्तु सदैव समान अवस्था में बनी रहती है, उसे जड़त्व कहते हैं | द्रव्यमान वस्तु के जड़त्व का संख्यात्मक मान है | जड़त्व का उदाहरण: चलती हुई कार के अचानक रूक जाने पर उसमें बैठे व्यक्ति आगे झुक जाते हैं |
*न्यूटन का द्वितीय नियम : किसी वस्तु पर आरोपित बल F वस्तु के द्रव्यमान m तथा उसमें उत्पन्न त्वरण a के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होता हैं तथा त्वरण की दिशा वहीं होती है जो की बल की होती है | F = m x a
*न्यूटन के द्वितीय नियम से बल की माप एवं मात्रक मिलती है |
*न्यूटन का तृतीय नियम : प्रत्येक क्रिया के बराबर, परंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है | न्यूटन के तृतीय नियम से बल का गुण प्राप्त होता है |
*संवेग : किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं | इसका मात्रक – किग्राxमी./सेकेंड होता है |
*संवेग संरक्षण का सिद्धांत : यदि कणों के किसी निकाय या समूह पर कोई बाह्य बल नहीं लग रहा हो, तो उस निकाय का कुल संवेग नियत रहता है, अर्थात टक्कर से पहले तथा बाद का संवेग बराबर होता है |
*बल का आवेग : किसी वस्तु पर कार्य करने वाले बल और समय के गुणनफल को बल का आवेग कहते हैं |
*न्यूटन : वह बल जो 1 किग्रा. द्रव्यमान की वस्तु मे 1 मी.से2 का त्वरण उत्पन्न कर देता है उसे 1 न्यूटन कहते हैं |
*किसी गतिशील वस्तु को रोकने हेतु आवश्यक बल, वस्तु के वेग पर निर्भर करता है |
*ऐसी मशीन जिसकी दक्षता शत-प्रतिशत हो, आदर्श मशीन कहलाती है | आदर्श मशीन पूर्णत: घर्षण रहित होती है, परंतु व्यवहारिकता में ऐसा सम्भव नहीं है |
*दूध से मक्खन निकालने की मशीन, कपडा सुखाने की मशीन अपकेंद्रीय बल के सिद्धांत पर कार्य करती है |
*घिरनियाँ सरल मशीन का मुख्य उदाहरण मानी जाती हैं |
*उत्तोलक : उत्तोलक एक सीधी या टेढ़ी छड़ होती है, जो किसी निश्चित बिंदु के चारों ओर स्वतंत्रता पूर्वक घूम सकती है | उत्तोलक के तीन मुख्य भाग होते हैं – 1. आलम्ब : जिस निश्चित बिंदु के चारो ओर उत्तोलक की छड़ स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकती है, उसे आलम्ब कहते हैं |इसे F से सूचित किया जाता है | 2. आयास : उत्तोलक को उपयोग में लाने के लिए उसकी छड़ पर जो बल लगाया जाता है, उसे आयास कहते हैं | इसे E से सूचित किया जाता है | 3. भार : उत्तोलक छड़ के द्वारा जो बोझ उठाया जाता है, उसे भार कहते हैं | इसे W से सूचित किया जाता है |
*उत्तोलक का यांत्रिक लाभ =  
*उत्तोलक का सिद्धांत : आयास x आयास भुजा = भार x भार भुजा
* प्रथम श्रेणी के उत्तोलक : प्रथम श्रेणी के उत्तोलक में भार बीच में होता है | इस प्रकार के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ 1 से अधिक, 1 के बराबर एवं 1 से कम भी हो सकता है | कैची, पिलास, कील उखाड़ने की मशीन आदि प्रथम श्रेणी के उत्तोलक हैं |
* द्वितीय श्रेणी के उत्तोलक  : द्वितीय श्रेणी के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ सदैव 1 अधिक होता है |  सरौता, नीबू निचोड़ने की मशीन, एक पहिये की कूड़ा गाडी द्वितीय श्रेणी के उत्तोलक हैं |
*तृतीय श्रेणी के उत्तोलक : तृतीय श्रेणी के उत्तोलकों में यांत्रिक लाभ सदैव 1 से कम होता है |चिमटा, हाथ तृतीय श्रेणी के उत्तोलक हैं |
*गुरूत्वाकर्षण : अपने द्रव्यामान के कारण दो वस्तुएं एक-दूसरे को जिस बल से अपनी ओर आकर्षित करती हैं, उस बल को गुरूत्वाकर्षण बल कहते हैं |
*किसी पिंड पर आरोपित गुरूत्व बल के कारण पिंड में जो त्वरण उत्पन्न होता है, उसे गुरूत्वीय त्वरण (g) कहते हैं |
*गुरूत्वीय त्वरण का मान 9.8 मी./से.2 होता है | g = GM / R2 होता है (जहाँ G = गुरूत्वाकर्षण नियतांक, M = पृथ्वी का द्रव्यमान, R = पृथ्वी की त्रिज्या)
गुरूत्वीय त्वरण का मान ध्रुवों पर अधिकतम एवं भूमध्य रेखा पर न्यूनतम होता है | g का मान पृथ्वी के केंद्र पर शून्य होता है | पृथ्वी तल से नीचे या ऊपर आने पर g का मान घटता है |गुरूत्वीय त्वरण g का मान वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है |
*पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ने पर g का मान कम हो जाता है तथा घूर्णन गति घटने पर g का मान बढ़ जाता है |
*पृथ्वी का द्रव्यमान वहीं रहे और त्रिज्या 1% कम हो जाये, तब पृथ्वी तल पर g का मान 0.5% बढ़ जायेगा |
*भार : जिस बल द्वारा पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है, उस बल को वस्तु का भार कहते हैं | भार (W) = mg
*पृथ्वी के केंद्र पर भार शून्य होता है |
*भार एक सदिश राशि है, भार को कमानीदार तुला से मापा जाता है |
*1 किग्रा. राशि का वजन 9.8 न्यूटन होता है |
*एक वस्तु का भार अधिकतम वायु में होता है |
*वस्तु का भार गुरूत्व-केंद्र से ठीक नीचे की ओर कार्य करता है | अत: गुरूत्व-केंद्र पर वस्तु के भार के बराबर उपरिमुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं |
*स्थायी संतुलन के लिए वस्तु का गुरूत्व-केंद्र G अधिकाधिक नीचे होना चाहिए, गुरूत्व केंद्र से होकर जाने वाली उर्ध्वाधर रेखा वस्तु के आधार से गुजरनी चाहिए |
*पीसा की मीनार तिरछी होते हुए भी नहीं गिरती है, क्योंकि उसके गुरूत्व-केंद्र से गुजरने वाली उर्ध्वाधर रेखा उसके आधार से होकर जाती है |
*राकेट का पलायन न्यूटन के तृतीय नियम पर आधारित होता है | 
*प्रक्षेप्य पथ परवलयाकार होता है |
*भू-स्थिर उपग्रह का परिक्रण काल 24 घंटा होता है | भू-स्थिर उपग्रह विषुवत रेखा से 35800 किमी. की ऊचाई पर होते हैं |
*पृथ्वी के अपेक्षा चंद्रमा का द्रव्यमान 1/81 है |
*पृथ्वी की त्रिज्या चंद्रमा की त्रिज्या से लगभग 4 गुनी अधिक है |
*गुरूत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम का प्रतिपादन न्यूटन ने किया |
*पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेके जाने पर वह गुरूत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है, तथा वह पृथ्वी पर वापस नहीं आता है |
*पृथ्वी के लिए पलायन वेग 11.2 किमी./से. होता है |
* सौर मण्डल के लिए पलायन वेग 42 किमी./से. होता है |
* चंद्रमा के लिए पलायन वेग 2.37 किमी./से. होता है |
*चंद्रमा का पलायन वेग कम होने के कारण वहाँ वायुमण्डल टिक नहीं पाता है
*पलायन वेग कक्षीय वेग का गुना होता है, इसलिए यदि किसी उपग्रह की कक्षीय वेग को गुना (अर्थात् 41%) बढ़ा दिया जाये, तो वह अपनी कक्षा छोड़कर पलायन कर जायेगा |
*चंद्रमा पर किसी पिण्ड का भार, पृथ्वी पर उसके भार का 1/6 गुना होता है |
*कृत्रिम उपग्रह के अंदर प्रत्येक वस्तु भारहीनता की स्थिति में होती है | भारहीनता की स्थिति गुरूत्वाकर्षण की शून्य स्थिति के कारण होती है |
*एक उपग्रह पृथ्वी के घूर्णन की दिशा में पृथ्वी का परिक्रमण कर रहा है, इस उपग्रह में से एक प्रेक्षक को पृथ्वी पर भूमध्य रेखा पर स्थित एक बिंदु प्रत्येक 8 घण्टे के बाद दिखता है, तो इसका अर्थ है कि उपग्रह 16 घंटे में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरा करता है |
*चंद्रमा को अपने अक्ष के सापेक्ष एक चक्कर लगाने में करीब 28 दिन का समय लगता है |
*मानव द्वारा बनाये गये उपग्रह थर्मोस्फीयर में स्थापित किये जाते हैं |
*अंतरिक्ष यात्री को आकाश काला दिखाई देता है |
*दूध से क्रीम अलग करने पर दूध का घनत्व बढ़ जाता है |
*कपडा सुखाने की मशीन तथा दूध से मक्खन निकालने की मशीन अपकेंद्रीय बल के सिद्धांत पर कार्य करती है |
*स्प्रिंग को अपनी सामान्य लम्बाई पर वापस लौटने के लिए लगने वाले बल को प्रत्यानयन बल कहते हैं |
*क्रायोजेनिक इंजनों का प्रयोग राकेट प्रौद्योगिकी में होता है |
*45  के कोण पर किसी वस्तु को प्रक्षेपित किया जाये तो वह अधिकतम दूरी तय करेगा |
*90  के कोण पर किसी वस्तु को प्रक्षेपित किया जाये तो वह अधिकतम ऊँचाई तय करेगा |
*वस्तु की मात्रा बढ़ाने पर भार ऐसा भौतिक गुण है जो अपरिवर्तित रहता है |
*पहाड़ पर चढ़ता हुआ व्यक्ति स्थायित्व बढ़ाने के लिए आगे की ओर झुक जाता है |
*गतिशील ट्रेन की खिड़की से एक पत्थर गिरा दिया जाये तो पत्थर पृथ्वी पर परवलयाकार पथ बनाते हुए गिरेगा |
*बंदर के सिर पर गोली मारने के लिए निशाना बंदर के सिर के ऊपर लेना होगा |
*साइकिल के पहिए की गति घूर्णन के साथ-साथ स्थानांतरीय होती है |
*एक समान वेग से गतिशील ट्रेन में एक यात्री एक गेंद को ऊपर उछलता है, तो गेंद यात्री के हाथ में वापस आयेगी |
*जब गोली किसी लक्ष्य पर लगती है, तो यह गल जाती है, क्योंकि इसकी गति संबंधी ऊर्जा उष्मा में बदल जाती है, क्योंकि यह अवरोधक द्वारा रोक दिया जाता है |
*एक वस्तु 9.8 मी./से. के वेग से ऊर्ध्वाधरत: ऊपर फेंकी जाती है, वह 14.7 मी. ऊंचाई तक ऊपर जायेगी (g = 9.8 m/s2)|
*साइकिल के पहिए के रिम भारी एवं मोटे बनाये जाते हैं तथा बीच का भाग पतला या खोखला बनाया जाता है, इससे जड़त्व आघूर्ण बढ़ जाता है |
*कोई वस्तु विरामावस्था से चलकर 5 सेकेंड मे 2 मी/से2 का त्वरण उत्पन्न करता है, तो इसका अंतिम वेग 10 मी/से. होगा |
*दो वस्तुएँ जिनका वेग क्रमश: 5 मी/से. तथा 10 मी.से. हो एक ही सरल रेखा में विपरीत दिशा में चल रही हो, उसका आपेक्षिक वेग 15 मी.से. होगा |
*घर्षण गुणांक का कोई मात्रक नहीं होता है |
*चरम घर्षण बल सबसे बड़ा होता है |
*दाब, बल और क्षेत्रफल पर निर्भर करता है | दाब (P) = h x d x g
*बल बढ़ाने पर दाब का मान बढ़ जाता है तथा क्षेत्रफल बढ़ाने पर बल का मान कम हो जाता है |
*दाब का मात्रक न्यूटन/मी2 (पास्कल) होता है यह एक अदिश राशि है |
*गहराई बढ़ने से द्रव दाब बढ़ता है |
*एक ही गहराई पर सभी दिशाओं में समान दाब लगता है |
*दाब द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है, द्रव का घनत्व जितना ही अधिक होगा उसका दाब किसी गहराई पर उतना ही अधिक होगा |
*यदि गुरूत्वीय प्रभाव को नगण्य माना जाय, तो संतुलन की अवस्था में द्रव के भीतर प्रत्येक बिंदु पर दबाव समान होगा |
*सभी द्रवों का क्वथनांक दाब बढ़ाने से बढ़ जाता है |
*वायुमंडलीय दाब वह दाब होता है, जो पारे के 76 सेमी. वाले एक कॉलम के द्वारा 0   पर 45  अक्षांश पर समुद्र तल पर लगाया जाता है |
*वायुमण्डलीय दाब का एस.आइ. मात्रक बार होता है | 1 बार = 105 न्यूटन/मी.2
*वायुमण्डलीय दाब एक बार के बराबर होता है |
*पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर वायुमंडलीय दाब कम होता जाता है, इसी कारण पहाड़ों पर खाना बनाने में कठिनाई होती है तथा वायुयान में बैठे यात्री के फाउंटेन पेन की स्याही रिस जाती है |
*प्रति 1000 फुट ऊपर जाने पर वायु का दाब पारा-स्तम्भ का 1 इंच (=2.54 सेमी.) कम हो जाता है |
*वायुदाबमापी में पारे के स्थान पर पानी भरने पर नली की ऊंचाई 10.33 मीटर होगा |
*ताँबे की गेंद को गर्म करने पर इसका घनत्व घटता है |
*प्रेशर कुकर में खाना जल्दी पकता है, क्योंकि अंदर क्वथनांक अधिक होने लगता है |
*पिंड का हवा में भार 100 ग्राम है और पानी में डालने पर भार सिर्फ 92 ग्राम है, तो उस पिंड का आयतन 8cc होगा |  
*किसी गैस का आयतन स्थिर ताप पर 20% कम करने के लिए उसका दाब 20% बढ़ाना होगा |
*परम दाब गेज दाब +1 बार होता है |
*एक नदी में चलता हुआ जहाज समुद्र में आता है, तो जहाज का स्तर थोड़ा ऊपर हो जाता है |
*ऑटोमोबाइल्स के हाइड्रोलिक ब्रेक पास्कल के सिद्धांत पर कार्य करते हैं |
*समुद्र में घनत्व बढ़ता है, तो लवणता और गहराई दोनों बढ़ती है |
*भारी बाहन में डीजल का उपयोग उच्च क्षमता और आर्थिक बचत के लिए किया जाता है |
*द्रव का वह गुण, जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है, उत्प्लावक बल कहते हैं | यह बल वस्तुओं द्वारा हटाये गये गुरूत्व-केंद्र पर कार्य करता है | इसका सर्वप्रथम अध्ययन आर्किमीडिज ने किया था |
*आर्किमीडिज के अनुसार अगर कोई वस्तु किसी शांत और स्थिर तरल में अंशत: या पूर्णत: डूबती है, तो इसके भार में आभासी कमी आती है, जो कमी वस्तु के द्वारा विस्थापित तरल के भार के बराबर होती है |
*प्लवन के नियमानुसार तैरने वाली वस्तु का वजन इसके द्वारा विस्थापित द्रव के वजन के बराबर होना चाहिए तथा वस्तु का गुरूत्व केंद्र और वस्तु के द्वारा विस्थापित द्रव का गुरूत्व केंद्र एक ही उदग्र रेखा पर होना चाहिए |
*घनत्व = द्रव्यमान / आयतन (इसका मात्रक किग्रा/मी3 होता है) |
*आपेक्षिक घनत्व = वस्तु का घनत्व / 4  पर पानी का घनत्व |
*आपेक्षिक घनत्व का कोई मात्रक नहीं होता है | आपेक्षिक घनत्व को हाइड्रोमीटर से मापा जाता है |
*यदि वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से कम है, तो वह उस द्रव में तैरती है |
*लोहा पारे पर तैरता है, क्योंकि लोहे का घनत्व पारे की अपेक्षा कम होता है |
*शुद्ध जल का घनत्व 1 ग्राम/सेमी.3 होता है |
*बर्फ का घनत्व 0.9 ग्राम/सेमी.3 होता है |
*दूध की शुद्धता लैक्टोमीटर से मापते हैं |
*पानी पर तैरती वस्तु का आभासी भार शून्य होता है | 
*एक पिंड किसी द्रव्य में तैर रहा है, पिंड और द्रव्य का घनत्व बराबर है, अगर पिंड को नीचे की ओर दबाकर छोड़ दिया जाये, तो जहाँ उसे छोड़ा जायेगा वह वहीं रहेगा |
*चौराहे पर पानी के फुहारे में गेंद नाचती रहती है, क्योंकि पानी का वेग अधिक होने से दाब घट जाता है |
*एक ही पदार्थ के अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को ससंजक बल कहते हैं |
*ठोसों का ससंजक बल अधिक तथा द्रवों का ससंजक बल कम होता है |
*दो भिन्न पदार्थ के अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को आसंजक बल कहते हैं |
*पानी का कांच को भिंगोना, ब्लैक बोर्ड पर चॉक का लिखना आसंजक बल के कारण होता है | 
*जब आसंजक बल का मान द्रव के ससंजक बल के मान से कम होता है, तो वह ठोस को गीला नहीं कर पाता है |जैसे- पारा के सतह पर तेल फैल जाता है, थर्मामीटर में पारा नहीं चिपकता है |
*द्रव का वह गुण जिसके कारण कम से कम क्षेत्रफल प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है तथा स्वतंत्र पृष्ठ सदैव तनाव की स्थिति में रहता है, को पृष्ठ तनाव कहते हैं |
*द्रव का ताप बढ़ाने पर पृष्ठ तनाव कम हो जाता है और क्रांतिक ताप पर यह शून्य हो जाता है |
*पृष्ठ तनाव के उदाहरण – 1. शेविंग ब्रश को जल से निकाले जाने पर इसके केश आपस में सटे रहते हैं | 2. समुद्र की लहरों को शांत करने के लिए तेल गिराया जाता है, पृष्ठ-तनाव में कमी आने से लहरों की ऊंचाई कम हो जाती है 3. वर्षा की बूंदे एवं पारे के कण गोलाकार होते हैं |  
*पृष्ठ-तनाव के कारण कपूर के छोटे-छोटे टुकड़े जल की सतह पर नाचते हैं |
*साबुन, डिटर्जेंट आदि जल के पृष्ठ-तनाव को कम कर देते हैं, अत: वे मैल मे गहराई तक चले जाते हैं |
*द्रव का घनत्व अधिक होने पर पृष्ठ-तनाव बढ़ जाता है |
*गरम सूप स्वादिष्ट लगता है, क्योंकि गरम द्रव का पृष्ठ-तनाव कम होता है, अत: वह जीभ के ऊपर सभी भागों में अच्छी तरह से फैल जाता है |
*पानी मे मिट्टी का तेल मिला देने से उसका पृष्ठ-तनाव कम हो जाता है जिससे मच्छरों के लार्वा पानी में डूब जाते हैं |
*केशनली में द्रव के ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने की घटना को केशिकत्व कहते हैं | नली की त्रिज्या जितनी कम होती है, द्रव उतना ही ऊपर चढ़ता है | केशिकत्व के उदाहरण – पेपर द्वारा स्याही का सोखना, बत्ती में तेल का ऊपर चढ़ना, ढेले द्वारा पानी का सोखना, खेत की जुताई कर देने पर पानी का ऊपर न आना | 
*कोशिका नली में जल का ऊपरी सतह अवतल तथा पारे की ऊपरी सतह उत्तल होती है |
*जो द्रव जितने अधिक गाढ़े होते हैं, वे उतने ही अधिक श्यान होते हैं |
*ताप बढ़ाने पर द्रव की श्यानता घट जाती है, लेकिन गैसों की बढ़ जाती है |
*नियत वेग को वस्तु का सीमांत वेग कहते हैं | सीमांत वेग के ही आधार पर पैराशूट की सहायता से व्यक्ति नीचे गिरता है |
*कम पृष्ठ-तनाव तथा उच्च श्यानता एक अच्छे स्नेहक के गुण होते हैं |
*सामान्य जल का पृष्ठ-तनाव 73 डायन/सेमी. होता है |
*तरल के प्रवाह का दर बेचुरीमीटर से मापा जाता है |
*श्यानता गुणांक का मात्रक प्वायज होता है |
*आँधी आने पर छप्पर का उड़ना तथा प्लेटफार्म पर खड़े आदमी का गाड़ी की ओर खींचा जाना बरनौली के प्रमेय पर आधारित है |
*द्रवों का वह गुण, जिसके कारण यह अपनी विभिन्न परतों में होने वाली गति का विरोध करता है, श्यानता कहलाता है |
*ठंडे देशों में झीलों के जम जाने के पश्चात् भी जलीय जंतु जिंदा रहते हैं, क्योंकि बर्फ के नीचे जल 4  पर होता है |
*पदार्थ का वह गुण जिसके कारण वस्तु पर लगने वाले बाह्य बल को हटा लेने पर वस्तु पुन: अपना मूल आकार और रूप प्राप्त कर लेता है, प्रत्यास्थता कहलाता है |
*रबर की अपेक्षा इस्पात अधिक प्रत्यास्थ है |
*जब कोई वस्तु स्थायी रूप से विकृत हो जाती है, तो इसे प्लास्टिक विरूपण कहा जाता है |
*कार्य की माप, लगाये गये बल तथा बल की दिशा में वस्तु के विस्थापन के ग़ुणनफल के बराबर होता है (कार्य = बल x विस्थापन)|
*कार्य का एस.आई. मात्रक न्यूटन-मीटर होता है, जूल कहते हैं | 
*किसी वस्तु की कार्य करने की क्षमता को उस वस्तु की ऊर्जा कहते हैं | इसका एस.आई. मात्रक जूल होता है |
*यदि बल और विस्थापन एक ही दिशा में नहीं है, बल्कि दोनों की दिशाओं के मध्य कोण बनता है, तो W = Fs cos
*संवेग के दोगुना करने पर स्थितिज ऊर्जा 4 गुना हो जायेगी |
*किसी वस्तु की स्थिति या आकार के कारण जो कार्य करने की क्षमता आ जाती है, उसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं | स्थितिज ऊर्जा = द्रव्यमान x गुरूत्वीय त्वरण x ऊँचाई अर्थात्
*छत पर दौड़ता हुआ बालक, छत से टँगा हुआ पंखा तथा वर्षा का गिरता हुआ पानी इत्यादि यांत्रिक ऊर्जा के उदाहरण हैं |
  1 KW = 1000W,                   1 MW = 106W,
  1 HP = 746W,                      1 वाट-सेकेण्ड = 1 जूल,
  1 जूल = 107 अर्ग                     1 वाट-घण्टा = 3600 जूल,
  1000 वाट = 1 यूनीट               1000 वाट घण्टा = 3.6x106 जूल |   
*आइंसटीन ने यह सिद्धांत दिया कि द्रव्यमान भी ऊर्जा का ही एक रूप है | आइंसटीन का द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण E = mc2 है | जहाँ m=द्रव्यमान, c=प्रकाश का वेग
*ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत के अनुसार, ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में केवल परिवर्तन ही किया जा सकता है, ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है न तो नष्ट की जा सकती है |अत: विश्व की समस्त ऊर्जा का परिमाण स्थिर रहता है |
*घड़ी की चाभी देने पर उसमें स्थितिज ऊर्जा सग्रहित होती है |
*एक वस्तु पृथ्वी की ओर गिर रही है तो उसकी स्थितिज ऊर्जा घटेगी |
*यदि कोई पिण्ड पृथ्वी से ठीक ऊपर की ओर फेका जाए, तो ऊपर की ओर जाते हुए उसकी सम्पूर्ण ऊर्जा नियत रहती है |
*जब कोई वस्तु ऊपर से गिराई जाती है, तो उसका भार परिवर्तनशील होता है |
*किसी वस्तु में उसके गति के कारण जो कार्य करने की क्षमता आ जाती है, उसे गतिज ऊर्जा कहते हैं |
*द्रव्यमान दुगुना होने पर गतिज ऊर्जा भी दोगुना हो जाती है |
*किसी वस्तु की चाल आधी कर दी जाये, तो उसकी गतिज ऊर्जा एक चौथाई हो  जायेगी |
*यदि किसी वस्तु की चाल दुगुनी कर दी जाये, तो उसका संवेग दुगुना तथा उसकी गतिज ऊर्जा 4 गुनी हो जायेगी |
*यदि पृथ्वी का द्रव्यमान बिना परिवर्तित हुए, उसका व्यास आधा हो जाये तो पृथ्वी पर किसी वस्तु का भार 4 गुना हो जायेगा |
*अलग-अलग द्रव्यमान के दो पिंडों को स्वतंत्रता पूर्वक समान ऊचाई से छोड़ा जाये तो इन पिंडो के पृथ्वी की ओर आकर्षण बल भिन्न-भिन्न होंगें |
*दो गेंदे जिनका भार अलग-अलग है, एक मीनार से गिराई जाती हैं, दोनों एक साथ नीचे पहुंचेगी | 
*हवा मे लोहे और लकड़ी के समान भार की दो गेंद को समान ऊंचाई से गिराने पर पृथ्वी पर दोनों एक समय गिरेंगी |
*पृथ्वी के केंद्र से होकर, भूमंडल के विपरीत बिंदु तक एक छेद का वेधन किया जाये, तो इस छेद से गिराया गया एक सिक्का आयाम ह्यास के साथ एक किनारे से दूसरे किनारे तक दोलन करेगा |
*एक वस्तु का वजन अधिकतम पृथ्वी के ध्रुओं पर होता है |
*किसी वस्तु का जड़त्व वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करता है |
*किसी पिंड के द्रव्यमान व भार में अंतर होता है, क्योंकि द्रव्यमान स्थिर रहता है, जबकि भार परिवर्तनीय होता है |
*यदि गति करने के लिए स्वतंत्र 1 किग्रा. द्रव्यमान की किसी वस्तु पर 1 न्यूटन का बल लगाया जाये तो वह 1 मी.से.2 के त्वरण से गति करेगी |
*राकेट की गति संवेग-सरक्षण के सिद्धांत पर आधारित होती है |
*डायनेमों यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है |
*मोमबत्ती रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में बदलती है |
*माइक्रो फोन ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है |
*लाउडस्पीकर विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में बदलता है |
*सोलर सेल सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है |
*ट्यूबलाइट विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में बदलती है |
*विद्युत बल्ब विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा एवं उष्मा ऊर्जा मे बदलता है |
*विद्युत मोटर विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है |
*विद्युत सेल रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है |
*सितार यांत्रिक ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में बदलता है |
*प्रकाश-विद्युत सेल प्रकाश को विद्युत ऊर्जा मे बदलता है |
*भाप, पेट्रोल एवं डीजल इंजन उष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है |
*नाभिकीय रिएक्टर नाभिकीय ऊर्जा को उष्मा, प्रकाश एवं यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है |
*यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुना अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर वस्तु का भार शून्य हो जायेगा |
*जब लिफ्ट ऊपर की ओर जाती है, तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार बढा हुआ प्रतीत होता है |
*जब लिफ्ट नीचे की ओर आती है, तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है |
*जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे जाती है, तो लिफ्ट मे स्थित पिंड के भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होता है |
*यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए, तो वह मुक्त पिंड की भाँति नीचे गिरती है, अर्थात् पिंड का भार शून्य होता है, यहीं भारहीनता की स्थिति है |
*यदि लिफ्ट के नीचे गिरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरूत्वीय त्वरण से अधिक हो, तो लिफ्ट में स्थित पिंड फर्श से उठकर उसकी छत से टकरा जायेगा |
*प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग नियत रहता है , इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है तो उसका वेग कम हो जाता है |
*सूर्य से अधिक दूरी के ग्रहों का परिक्रमण-काल अधिक होता है |
*पृथ्वी के उपग्रह का कक्षीय वेग कक्षा की त्रिज्या पर निर्भर करता है |
*उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर न निर्भर होकर पृथ्वी तल से ऊंचाई पर निर्भर करता है |
*पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 84 मिनट होता है |
*उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से ऊंचाई पर निर्भर करती है | उपग्रह पृथ्वी तल से जितना अधिक दूर होगा, उसकी चाल उतनी ही कम होगी |
*उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यामान पर निर्भर नहीं करती है, एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी |
*पृथ्वी-तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8km/s होती है |
*पृथ्वी के परित: घूमने वाले कृत्रिम उपग्रह से बाहर गिराई गई गेंद पृथ्वी के परित: उपग्रह के समान आवर्त काल के साथ उसी की कक्षा में घूमती रहेगी |
*सामान्य जल की अपेक्षा समुद्री जल का घनत्व अधिक होता है, इसी कारण उसमें तैरना आसान होता है | 
*जब बर्फ पानी में तैरता है तो उसका 1/10 भाग पानी के ऊपर रहता है |
*किसी बर्तन में पानी भरा है और उस पर बर्फ तैर रही है, जब बर्फ पूरी तरह से पिघल जायेगी तो पात्र में जल का स्तर समान ही रहेगा |
*बादल वायु में कम घनत्व के कारण तैरता रहता है |
*बर्फ के दो टुकड़ों को आपस में दबाने पर टुकड़े आपस में चिपक जाते हैं, क्योंकि दाब अधिक होने से बर्फ का गलनांक घट जाता है |
*सबसे शुद्ध जल वर्षा का जल होता है |
*पवन ऊर्जा द्वारा सबसे सस्ती विजली प्राप्त की जाती है |
*खाद्य ऊर्जा कैलोरी में मापी जाती है |
*भारत के लिए अन्यत्र उपयुक्त अपारंपरिक ऊर्जा-स्रोत सौर-ऊर्जा है |
*10 किग्रा. का एक पिंड जमीन से 10 मीटर की ऊंचाई पर है, उसकी स्थितिज ऊर्जा 9800 जूल होगी (g = 9.8 m/s) |
*गतिज ऊर्जा के वेग मे 25% वृद्धि करने पर गतिज ऊर्जा में 56.25% की वृद्धि होगी |
*टेलीफोन लाइन मे इलेक्ट्रिकल-ऊर्जा गमन करती है |
*1 ग्राम और 4 ग्राम द्रव्यमान की दो वस्तुएँ एक ही गतिज-ऊर्जा से गति कर रही हैं, उनके रेखीय संवेग के परिमाण का अनुपात 1 : 2 होगा |
*एक हल्की और एक भारी वस्तु को ऊंचाई पर से एक साथ गिराया जाता है, अगर वायु प्रतिरोध को नगण्य माना जाये तो दोनों एक ही साथ जमीन पर गिरेगीं |
*एक वस्तु उदासीन साम्यावस्था में है, उसे हिलाने पर उसकी स्थितिज-ऊर्जा शून्य हो जायेगी |
*एक 20J की गतिज-ऊर्जा और 100g के द्रव्यमान वाले पिंड का वेग 20 m/s होगा |
*एक व्यक्ति को 5 मीटर की दूरी पर भार लेकर जाना है, अधिकतम कार्य तब होगा, जब वह एक क्षैतिज सतह पर भार को ठेलता है |
*एक बस, एक कार एवं एक मोटर साइकिल एक ही गतिज ऊर्जा में गति करते हैं, ब्रेक द्वारा समान मंदन प्रयोग करने पर मोटर साइकिल कम दूरी पर रूकेगा|
*स्वतंत्रता पूर्वक गिरती हुई वस्तु की कुल ऊर्जा नियत रहती है |
*भौतिक अथवा रासायनिक तुला (दो पल्ला) लीवर के सिद्धांत पर काम करता है |
*टैकोमीटर द्वारा घूमने की गति मापी जाती है |
*आवृत्ति को शेरिंग ब्रीज के प्रयोग द्वारा मापा जा सकता है |
*लैथ मशीन पर कूलर का प्रयोग वर्क पीस को ठंडा रखने के लिए किया जाता है |
*डी.सी. मोटर का चालन टार्क उच्च होता है |
*अनुदैर्ध्य तरंग : जब तरंग गति की दिशा माध्यम के कणों के कम्पन करने की दिशा के अनुदिश (समांतर) होती है, तो ऐसी तरंग को अनुदैर्ध्य तरंग कहते हैं | अनुदैर्ध्य तरंग में संपीडन एवं विरल बनता है | अनुदैर्ध्य तरंग ठोस, द्रव एवं गैस तीनों माध्यम में उत्पन्न होती हैं | ध्वनि अनुदैर्ध्य तरंग का उदाहरण है |
*अनुप्रस्थ तरंग : जब तरंग गति की दिशा माध्यम के कणों के कम्पन करने की दिशा के लम्बवत् होती है, तो इस प्रकार की तरंगों को अनुप्रस्थ तरंग कहते हैं| अनुप्रस्थ तरंग ठोस एवं द्रव माध्यम में उत्पन्न होता है | प्रकाश अनुप्रस्थ तरंग का उदाहरण है |
*विद्युत चुम्बकीय तरंग : वैसी तरंग, जिसके गमन के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है, विद्युत चुम्बकीय तरंग कहलाती है | इसकी चाल प्रकाश के चाल के बराबर होती है, आवेश शून्य होता है | यह उदासीन होती है, यह अनुप्रस्थ होती है | इसके पास ऊर्जा एवं संवेग होते हैं |
*गामा, एक्स, पराबैगनी तथा अवरक्त इत्यादि विद्युत चुम्बकीय तरंग हैं |
*कैथोड, कैनाल, α, β, ध्वनि तथा पराश्रव्य इत्यादि विद्युत चुम्बकीय तरंग नहीं हैं |
*गामा किरण की खोज बैक्वेरल ने की इसका उपयोग नाभिकीय अभिक्रिया एवं कृत्रिम रेडियोधर्मिता में होता है |
*एक्स किरण की खोज रॉन्टजन ने की इसका उपयोग चिकित्सा एवं औद्योगिक क्षेत्र में होता है |
*पराबैगनी किरण की खोज रिटर ने की इसका उपयोग प्रकाश वैद्युत के प्रभाव को उत्पन्न करने एवं वैक्टीरिया को नष्ट करने में किया जाता है |
*तरंग दैर्ध्य का एस. आइ. मात्रक मीटर होता है |
*जिन यांत्रिक तरंगो की आवृति 20Hz से 20000Hz के बीच होती है, उनकी अनुभूति हमारे कानों द्वारा होती है, इन्हे हम ध्वनि के नाम से पुकारते हैं |
*ध्वनि तीव्रता का मात्रक डेसीबल होता है | ध्वनि की चाल 760 मील/घण्टा या 332 मी./से.होती है |
*विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल भिन्न-2 होती है| ध्वनि की चाल प्रत्यास्था तथा घनत्व (केवल माध्यम के गुणों) पर निर्भर करती है | 
*ध्वनि की चाल सबसे अधिक ठोस में, उसके बाद द्रव में, और सबसे कम वायु (गैस) में होती है |
*वायु मे ध्वनि की चाल 332 मी./से. , जल में 1483 मी./से., और लोहे में ध्वनि की चाल 5130 मी./से. होती है |
*जब ध्वनि एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो ध्वनि की चाल एवं तरंग दैर्ध्य बदल जाती है, जबकि आवृत्ति नहीं बदलती है |
*ध्वनि की चाल पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है |
*जब किसी स्रोत एवं स्रोता के मध्य आपेक्षिक गति होती है तो स्रोता को ध्वनि की आवृत्ति , वास्तविक आवृत्ति से अलग सुनाई पड़ती है, इसे डाप्लर का प्रभाव कहते हैं
*माध्यम का ताप बढाने पर उसमें ध्वनि की चाल बढ़ जाती है | वायु में प्रति 1C ताप पर ध्वनि की चाल 0.61 मी./से. बढ़ जाती है |
*नमी युक्त वायु का घनत्व, शुष्क वायु के घनत्व से कम होता है, अत: शुष्क वायु की अपेक्षा नमीं युक्त वायु में ध्वनि की चाल अधिक होती है |
*ध्वनि की तीव्रता स्रोत से दूरी के वर्ग के व्यूत्क्रमानुपाती होता है |
*अवश्रव्य तरंगें : 20Hz से नीचे की आवृति वाली ध्वनि तरंगों को अवश्रव्य तरंगें कहते हैं | इसे हमारा कान सुन नहीं सकता है |इस प्रकार की तरंगों को बहुत बडे आकार के स्रोतों द्वारा उत्पन्न किया जाता है |
*श्रव्य तरंगें : 20Hz से 20000Hz के बीच की आवृत्ति वाली तरंगों को श्रव्य तरंग कहते हैं | इन तरंगों को हमारा कान सुन सकता है |
*पराश्रव्य तरंगें : 20000Hz से ऊपर की तरंगों को पराश्रव्य तरंगें कहा जाता है | मनुष्य का कान इसे नहीं सुन सकता परंतु कुछ जानवर जैसे- कुत्ता, बिल्ली, चमगादड आदि इसे सुन सकते हैं | इन तरंगों को गाल्टन की सीटी द्वारा तथा दाब विद्युत प्रभाव विधि द्वारा, एवं क्वार्टज के क्रिस्टल के कम्पनों द्वारा उत्पन्न करते हैं | इन तरंगों की आवृत्ति बहुत ऊंची होने के कारण इसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है | इनका तरंग दैर्ध्य छोटा होने के कारण इन्हे एक पतले किरण-पुंज के रूप में बहुत दूर तक भेजा जा सकता है |  
*पराश्रव्य तरंगों का उपयोग : 1. संकेत भेजने में, 2. समुद्र की गहराई का पता लगाने में, 3. किमती कपडों, वायुयानों तथा घडियों के कल पुर्जे साफ करने में, 4. कल कारखानों की चिमनियों से कालिख साफ करने में, 5. दूध के अंदर से हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने में, 6. गठिया रोग के उपचार एवं मस्तिष्क ट्यूमर का पता लगाने में |
*तारतत्व : तारतत्व ध्वनि का वह लक्षण है, जिससे ध्वनि को मोटी या पतली कहा जाता है | तारतत्व आवृत्ति पर निर्भर करता है | ध्वनि की आवृत्ति अधिक होने पर तारतत्व अधिक होता है, एवं ध्वनि पतली होती है | वहीं आवृत्ति कम होने पर तारतत्व कम होता है एवं ध्वनि मोटी होती है |
*प्रति-ध्वनि सुनने के लिए स्रोत एवं परावर्तक के बीच न्यूनतम दूरी 16.6 मी. होनी चाहिए | प्रति ध्वनि का कारण ध्वनि का परावर्तन होता है |
*कान पर ध्वनि का प्रभाव 1/10 से. तक रहता है |
*ध्वनि तरंग एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है, तो उनका अपवर्तन हो जाता है, अर्थात् वह अपने पथ से विचलित हो जाती है |
*ध्वनि के अपवर्तन के कारण ध्वनि दिन की अपेक्षा रात को अधिक दूरी तक सुनाई पड़ती है |
*पराश्रव्य तरंगों का उपयोग अल्ट्रासाउण्ड के नाम से चिकित्सा विज्ञान में शरीर के भीतरी अंगों के चित्रण के लिए किया जाता है| इसे अल्ट्रासोनीग्राफी कहते हैं|
*विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण के लिए पदार्थ माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है | विद्युत चुम्बकीय तरंगों की चाल, निर्वात में 3.0x108 मी.से.-1 होती है |
*आवृत्ति का मात्रक हर्ट्ज होताहै |
*किसी गैस में केवल अनुदैर्ध्य तरंगें उत्पन्न हो सकती हैं |
*पानी में पत्थर डालने पर पानी की सतह पर केवल अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं |
*वायु में ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ एवं अनुदैर्ध्य दोनों प्रकार की होती हैं
*साधारण बातचीत की ध्वनि की तीव्रता 30 – 40 डेसीबल,  जोर से बातचीत की तीव्रता 50 – 60 डेसीबल तथा जेट विमान के तरंग की तीव्रता 140 – 150 डेसीबल होती है |
*ध्वनि के व्यतिकरण के कारण रेडियो में कभी तीव्र एवं कभी मंद आवाज सुनाई देती है |
*1939 में सं.रा.अमेरिका का टैकोमा पुल यांत्रिक अनुनाद के कारण क्षतिग्रस्त हो गया |
*मैक संख्या का उपयोग विमान की चाल निर्धारण मे किया जाता है |
*रडार का प्रयोग रेडियो तरंग से पदार्थों की उपस्थिति और स्थान निर्धारण मे किया जाता है |
*ध्वनि निर्वात् में गमन नहीं कर सकती है |
*मनुष्यों के लिए शोर की सह-सीमा लगभग 85 डेसीबल होती है |
*रेडियो तरंगें आयन मण्डल से परावर्तित होकर पृथ्वी पर वापस आती हैं |
*सोनोग्राफी में पराश्रव्य तरंगों का उपयोग किया जाता है |
*दो उत्तरोत्तर श्रृंग अथवा दो  उत्तरोत्तर गर्त्त के बीच की दूरी हो तरंगदैर्ध्य कहते हैं |
*ध्वनि का वेग सूखी हवा से नम हवा में अधिक होता है |
*सर्वाधिक ऊर्जा दृश्य-प्रकाश तरंगों मे होता है |
*जब सेना पुल को पार करती है, तो सैनिकों को कदम से कदम मिलाकर न चलने का निर्देश दिया जाता है, क्योंकि पैरों से उत्पन्न ध्वनि के अनुनाद से पुल टूटने का खतरा रहता है | 
*उष्मा वह ऊर्जा है, जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में केवल तापांतर के कारण स्थानांतरित होती है | किसी वस्तु में निहीत उष्मा उस वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करती है| उष्मा का स्थानांतरण उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है |
*1 ग्राम शुद्ध जल का ताप 14.5 C से 15.5 C तक बढ़ाने के लिए आवश्यक उष्मा की मात्रा को 1 कैलोरी कहते हैं |
*सेल्सियस पैमाना : इसका आविष्कार स्वीडन के वैज्ञानिक सेल्सियस ने किया था | इस पैमाने में 760 मिली.मी. पारा के स्तम्भ के दाब पर शुद्ध जल के हिमांक बिंदु को 0 C व भाप बिंदु को 100 C अंकित किया गया है | इसके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाटा गया है |
*फारेनहाइट पैमाना : इसका आविष्कार जर्मन वैज्ञानिक फारेनहाइट ने किया, इसमें जल के हिमांक को 32 F एवं भाप बिंदु को 212 F मान कर बीच की दूरी को 180 बराबर भागों में बांटा गया है | ‍‍‍‍‍
*केल्विन पैमाना : इसे केल्विन के द्वारा तैयार किया गया | इस पैमाने की विशेषता यह है कि इसका शून्य (0K) सिद्धांतत: प्रकृति में न्यूनतम सम्भव ताप होता है, जिस पर पदार्थ के अणुओं की गतिज ऊर्जा शून्य मानी जाती है | गतिज ऊर्जा शून्य से कम नहीं हो सकती है, पदार्थ का ताप भी इससे कम नहीं हो सकता | ताप का यह शून्य मान निरपेक्ष होने के कारण इसे परम शून्य भी कहते हैं तथा इस ताप-पैमाने को परम पैमाना कहते हैं | केल्विन पैमाने में हिमांक को 273K एवं भाप बिंदु को 373K मानकर बीच की दूरी को 100 भागों में बांटा गया है |
*सामान्य गणनाओं में -273 C को परम-शून्य माना जाता है |
*पारे का गलनांक -39 C तथा क्वथनांक 357 C होता है | अत: पारे द्वारा काफी उच्च ताप लगभग 245 C तथा काफी निम्न ताप -30 C तक माप सकते हैं |
*पारा उष्मा का अच्छा चालक होता है | यह अन्य द्रवों की अपेक्षा शुद्ध अवस्था में प्राप्त हो सकता है |
*निम्न ताप मापने के लिए एल्कोहल तापमापी का प्रयोग किया जाता है | एल्कोहल -115 C पर जमता है |
*सेल्सियस तथा केल्विन में सम्बंध : K=C+273
*डाक्टरी थर्मामीटर : स्वस्थ मनुष्य के शरीर का सामान्य ताप 98.4 F होता है | इस तापमापी में 92 F से 110 F तक निशान बने होते हैं | सेल्सियस पैमाने पर स्वस्थ मनुष्य का ताप 37 C तथा केल्विन पर यह ताप 310K होता है |
*-40 C ताप पर फारेनहाइट तथा सेल्सियस ताप के संख्यात्मक मान समान होते हैं |
*परम शून्य ताप का मान फारेनहाइट पैमाने पर -459.4 F होता है |
*जल 0 C से 3.98 C (लगभग 4 C) तक गरम करने पर आयतन में बढ़ना शुरू कर देता है | अर्थात् 4 C पर जल का घनत्व अधिकतम होता है |
*पदार्थों में द्रव से ठोस अवस्था में जाने पर पदार्थ का आयतन घटता है तथा घनत्व बढ़ता है, किंतु जल के हिमायन पर द्रव जल से ठोस बर्फ का आयतन अधिक तथा घनत्व कम होता है | इसी कारण अन्य ठोस द्रव में डूब जाते हैं जबकि बर्फ जल पर तैरती है |
*धातु के रेखीय प्रसार गुणांक, क्षेत्रीय प्रसार गुणांक एवं आयतन प्रसार गुणांक में अनुपात 1 : 2 : 3  का होता है |
*द्रव का आभासी प्रसार गुणांक उसके वास्तविक प्रसार गुणांक की तुलना में कम होता है |
*गैस का आयतन प्रसार गुणांक ठोस के आयतन प्रसार गुणांक से 200 गुणा तथा द्रवों के आयतन प्रसार गुणांक से 20 गुणा अधिक होता है |
*कमरे में रखे रेफ्रिजरेटर का दरवाजा खोल दिया जाए तो कमरे का ताप बढ़ जायेगा |
*पहाडों पर खाना देर से पकता है, क्योंकि वायुमण्डलीय दाब कम होने से जल का क्वथनांक घट जाता है |
*कमरे का सामान्य तापमान 27  या 80.6  होता है |
*पायरोमीटर से सूर्य के ताप को मापा जाता है | पायरोमीटर विकिरण पर आधारित है |
*उष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को उष्मा का संचरण कहते हैं |उष्मा संचरण की तीन विधियां चालन, संवहन एवं विकिरण हैं |
*चालन : चालन के द्वारा उष्मा, पदार्थ में एक स्थान से दूसरे स्थान तक, पदार्थ के कणों का अपने स्थान का परिवर्तन किये बिना पहुंचती है | ठोसों एवं पारे मे उष्मा का संचरण केवल चालन विधि द्वारा होता है |
*संवहन : इस विधि में उष्मा का संचरण पदार्थ के कणों के स्थानांतरण के द्वारा होता है | इस प्रकार पदार्थ कणों के स्थानांतरण से धाराएं बहती हैं जिन्हे संवहन कहते हैं | गैसों एवं द्रवों में उष्मा का संचरण संवहन द्वारा होता है |
*वायुमण्डल संवहन विधि द्वारा गर्म होता है |
*विकिरण : इस विधि में उष्मा गरम वस्तु से ठण्डी वस्तु की ओर बिना माध्यम को गरम किए प्रकाश की चाल से सीधी रेखा में संचरित होती है | सूर्य से ऊर्जा इसी विधि से पृथ्वी को प्राप्त होती है |
*विकिरण के कारण ही रेगिस्तान दिन मे बहुत गरम तथा रात मे बहुत ठण्डे होते हैं | बादलो वाली रात, स्वच्छ आकाश वाली रात से अधिक गरम होती है
*चिकने एवं चमकदार पृष्ठों की तुलना में खुरदुरे पृष्ठों से उष्मा-उत्सर्जन की दर अधिक होती है |
*किरचौफ का नियम : इस के अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जक होते हैं | अंधेरे कमरे में यदि एक काली और एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गरम करके रखा जार तो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगी, अत: काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी |
*बॉयल के नियमानुसार P1 V1 = P2 V2
*चार्ल्स के नियमानुसार V1/T1 = V2/ T2
*आदर्श गैस समीकरण के अनुसार PV = n RT जहाँ, n = मोलों की संख्या, R = सार्वत्रिक गैस नियतांक
*समान ताप एवं दाब पर सभी गैसों के समान आयतन में अणुओं की संख्या समान होती है |
*समान ताप एवं दाब (S.T.P.) पर विभिन्न गैसों के एक ग्राम अणु का आयतन 22.4 लीटर होता है तथा इसमें अणुओं की संख्या 6.023 1023 होती है, इसे एवोगैड्रो नियतांक भी कहते हैं |
*आदर्श कृष्णिका की अवशोषण क्षमता 1 होती है |
*उष्मा संचरण सर्वाधिक तीव्र वेग से विकिरण द्वारा होता है |
*स्वतंत्र गति करते हुए भू-उपग्रह में संवहन नहीं होता है |
*यदि किसी वस्तु को ठण्डा करते जाएं, तो -273 C ताप पर वस्तु से उष्मा का विकिरण रूक जायेगा |
*दो वस्तुओं के तापांतर के कारण उनके बीच स्थानांतरित ऊर्जा को उष्मीय ऊर्जा कहते हैं | इसका एस.आइ.मात्रक जूल होता है |
*1 ग्राम जल का ताप, 14.5 C से 15.5 C तक बढाने में जितनी उष्मा की आवश्यकता होती है, उसे 1 कैलोरी कहते हैं |
                1 कैलोरी = 4.18 जूल = 4.2 जूल (लगभग)
                1 किलो कैलोरी = 4.18 103 जूल |
*विशिष्ट उष्मा : किसी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा, उष्मा की वह मात्रा है, जो उस पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में एकांक ताप वृद्धि उत्पन्न करती है | विशिष्ट उष्मा का एस.आई. मात्रक जूल/किग्रा./केल्विन होता है |
*जल की 1 ग्राम मात्रा का ताप 1 C बढाने के लिए 1 कैलोरी उष्मा की आवश्यकता होती है | अत: जल की विशिष्ट उष्मा धरिता एक कैलोरी/ग्राम C है | जल की विशिष्ट उष्मा धरिता अन्य पदार्थों की तुलना में सबसे अधिक है |
*कोई वस्तु जैसे-जैसे ठण्डी होती जाएगी उसके ठण्डा होने की दर कम होती जायेगी |
*अवस्था परिवर्तन में पदार्थ का ताप नहीं बदलता है |
*प्राय: गलनांक एवं हिमांक दोनों बराबर होता है |
*जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर सिकुड़ते हैं, जैसे-बर्फ,उनका गलनांक दाब बढ़ाने पर घटता है, तथा जो पदार्थ ठोस से द्रव में बदलने पर फैलते हैं, उनका गलनांक दाब बढानें पर बढ़ता है | 
*अशुद्धि मिलाने से जैसे बर्फ में नमक मिलाने से गलनांक घटता है |
*क्वथनांक : निश्चित ताप पर द्रव का वाष्प में बदलना वाष्पन कहलाता है, तथा इस निश्चित ताप को क्वथनांक कहते हैं |
*संघनन : निश्चित ताप पर वाष्प का द्रव  में बदलना संघनन कहलाता है |
*संघनन एवं क्वथनांक ताप समान होते हैं |
*दाब बढ़ाने तथा अशुद्धि मिलाने से द्रव का क्वथनांक बढ़ता है |
*गुप्त उष्मा : नियत ताप पर पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन के लिए आवश्यक उष्मा को पदार्थ की गुप्त उष्मा कहते हैं |
*गलन की गुप्त उष्मा : नियत ताप पर ठोस के एकांक द्रव्यमान को द्रव में बदलने के लिए आवश्यक उष्मा की मात्रा को गलन की गुप्त उष्मा कहते हैं |
*बर्फ के लिए गलन की गुप्त उष्मा का मान 80 कैलोरी प्रति ग्राम होता है |
*वाष्पन की गुप्त उष्मा : नियत ताप पर द्रव के एकांक द्रव्यमान को वाष्प में बदलने के लिए आवाश्यक उष्मा की मात्रा को वाष्पन की गुप्त उष्मा कहते हैं | जल के लिए वाष्पन की गुप्त उष्मा का मान 540 कैलोरी प्रति ग्राम होता है |
*उबलते जल की अपेक्षा भाप से जलने पर कष्ट अधिक होता है, क्योकि जल की अपेक्षा भाप की गुप्त उष्मा अधिक होती है |
*0 C पर पिघलती बर्फ में कुछ नमक, शोरा मिलाने से बर्फ का गलनांक 0 C से घट कर -22 C  तक कम हो जाता है |
*कैलोरीमिति के सिद्धांत के अनुसार, दी गई उष्मा = ली गई उष्मा |
*आपेक्षिक आर्द्रता को प्रतिशत में व्यक्त करते हैं | इसे मापने के लिए हाइग्रोमीटर का प्रयोग किया जाता है | ताप बढ़ने पर आपेक्षिक आर्द्रता बढ़ती है |
*वातानुकुलित कमरे का ताप 23 C – 25 C के मध्य होना चाहिए | वायु की आपेक्षिक आर्द्रता 60% से 65% के बीच होनी चाहिए | वायु की गति 0.75 मी./मिनट से 2.5 मी./मिनट तक होनी चाहिए |
*तेज हवा वाली रात में ओस नहीं बनती, क्योंकि वाष्पीकरण की दर तेज होती है |
*ठंडक के दिन में सुबह लकड़ी की तुलना में लोहे का टुकड़ा अधिक ठंडा होता है, क्योंकि लकड़ी की तुलना में लोहा उष्मा का अच्छा चालक होता है |
*पहाड़ी स्थानों में जल का क्वथनांक कम होता है, क्योंकि वहाँ वायुमंडल का दाब कम होता है |
*पानी की विशिष्ट ऊष्मा सबसे अधिक 4200 जूल, तथा बर्फ की 2100 जूल होती है |
*ठंडे देशों मे कार रेडिएटरों में पानी के साथ एथलीन ग्लोकाइन मिलाया जाता है, यह पानी को जमने से रोकता है |
*स्टीम इंजन की क्षमता काफी कम होती है |
*जब वाष्प संघनित होती है, तो वह उष्मा उत्सर्जित करती है |
*लालटेन की लपट का पीला रंग केरोसीन के पूर्ण दहन का सूचक होता है |
*जलती हुई मोमबत्ती की लौ के उर्ध्वाधर सीधी होने का कारण वायु का गर्म होकर ऊपर उठना होता है |
*यदि हवा का तापमान बढ़ता है, तो उसकी जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है |
*धूप से बचने के लिए छाते में ऊपर सफेद तथा नीचे काले रंग का प्रयोग करना चाहिए |
*शीशे की छड़ जब भाप मे रखी जाती है, इसकी लम्बाई बढ़ जाती है, परंतु इसकी चौड़ाई अव्यवस्थित होती है |
*प्रेशर कुकर के अंदर का उच्चतम ताप ऊपर के छेद के क्षेत्रफल व उसपर रखे गये वजन पर निर्भर करता है |
*तापमापी में पारे का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह गर्म होने पर अधिक फैलता है |
*परम शून्य ताप पर अवस्था परिवर्तन नहीं होता है |
*द्रव तापमापी की अपेक्षा गैस तापामापी अधिक संवेदी होती है, क्योंकि गैस, द्रव की अपेक्षा अधिक प्रसार करती है |


*भारी हिमखण्ड शीर्ष की अपेक्षा नीचले तल से अधिक पिघलता है, क्योंकि निचले तल का दाब अधिक होने से गलनांक घट जाता है | 
*न्यूनतम सम्भव तापमान -273 अंश होता है |
*कमरे मे पंखा चला दिया जाये, तो कमरे की वायु का तपमान बढ़ जायेगा |
*झरने का जल ऊपर से नीचे गिरता है, तो उसका ताप बढ़ जाता है |
*पायरोमीटर से 800  से ऊपर का ताप मापा जाता है |
*किसी ठोस का ताप बढ़ाने पर उसका आयतन बढ़ जाता है, क्योंकि अणुओं के बीच की दूरी बढ़ जाती है |
*वाष्प इंजन एक बाह्य दहन इंजन होता है |
*प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जो विद्युत तरंगों के रूप में संचरित होती है | इसका तरंग दैर्ध्य 3900Á से 7800Á के बीच होता है |
*वायु तथा निर्वात में प्रकाश की चाल सबसे अधिक होती है | निर्वात में प्रकाश की चाल 3 108 मी./से. होती है |
*प्रकाश तरंग अनुप्रस्थ होती है | प्रकाश सरल रेखा में गति करता है |
*प्रकाश की चाल माध्यमों के अपवर्तनांक पर निर्भर करती है, माध्यम का अपवर्तनांक अधिक होने पर प्रकाश की चाल कम हो जाती है |
*यदि प्रकाश एक पारदर्शक माध्यम से दूसरे पारदर्शक माध्यम में जाता है तो उसका अपवर्तन हो जाता है |
*प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 499 सेकेंड यानी 8 मिनट 19 सेकेंड का समय लगता है |
*चंद्रमा से परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकेंड का समय लगता है |
*प्रकाश का प्रकीर्णन : जब प्रकाश ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थों के  अत्यंत सूक्ष्म कण होते हैं, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, इसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं |
*बैगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक एवं लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है |
*आकाश का रंग नीला प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही होता है |
*अपवर्तन के समय आपतित किरण, अभिलम्ब तथा अपवर्तित किरण तीनों एक ही समतल में स्थित होते हैं |
*किसी माध्यम का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंग के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है |
*तरंग दैर्ध्य बढ़ने के साथ-साथ अपवर्तनांक का मान कम हो जाता है |
*लाल रंग का तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक एवं नीले रंग का सबसे कम होता है |
*लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम एवं नीले रंग का सबसे अधिक होता है |
*यदि प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब की तरफ झुक जाती है |
* यदि प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब से दूर हट जाती है | 
*सामान्यत: मानव के नेत्रों की क्षमता पांच रंगों बैगनी, नीला, हरा, पीला तथा लाल को अलग-अलग पहचानने तक सीमित होती है |
*सामान्य आंख के लिए सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी. तथा अधिकतम दूरी अनंत होती है |
*सूर्य का प्रकाश जिसे श्वेत प्रकाश कहते हैं, सात वर्णों के प्रकाश का मिश्रण होता है |
*सूर्य के प्रकाश में प्रकीर्णन सबसे अधिक बैगनी रंग का होता है |
*प्रकाश के परावर्तन से घटने वाली घटनाएं : 1.द्रव में अंशत: डूबी हुई सीधी छड़ टेढी दिखाई पड़ती है | 2. तारे टिमटिमाते हुए दिखाई पड़ते हैं | 3. सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के बाद भी सूर्य दिखाई देता है | 4. पानी से भरे बर्तन की तली में पडा सिक्का उठा हुआ दिखाई पड़ता है | 5. जल के अंदर मछली वास्तविक गहराई से कुछ ऊपर प्रतीत होती है |
*किसी गोलीय दर्पण की फोकस दूरी, उसकी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है, फोकस-दूरी = वक्रता त्रिज्या या f =
*समतल, अवतल एवं उत्तल दर्पणों की पहचान : 1. स्पर्श करके : जिस दर्पण का परावर्तक तल उभरा हुआ होता है, वह उत्तल दर्पण होता है | यदि परावर्तक तल समतल हो, तो वह समतल दर्पण होता है | यदि परावर्तक तल अंदर की ओर दबा मालूम हो, तो वह अवतल दर्पण होता है | 2. प्रतिबिम्ब देखकर : दर्पण के पास किसी वस्तु को लाकर उसे धीरे-धीरे दर्पण से दूर हटाते हैं तथा दर्पण में वस्तु के बने प्रतिबिम्ब को देखते हैं | यदि सीधें प्रतिबिम्ब का आकार घटता है, तो वह दर्पण उत्तल होगा, यदि सीधे प्रतिबिम्ब का आकार बढ़ता है तो वह दर्पण अवतल दर्पण होगा | यदि सीधे प्रतिबिम्ब का आकार स्थिर रहता है, तो दर्पण समतल होगा |
*गोलीय दर्पणों के उपयोग : 1. समतल दर्पण का उपयोग : आइना के रूप में, पेरिस्कोप, कैलीडोस्कोप आदि के रूप में | 2. उत्तल दर्पण का उपयोग : मोटर कार के पीछे के दृश्य देखने के लिए, सड़क पर लगे सोडियम परावर्तक लैम्पो में, सूक्ष्म दर्शी एवं दूरदर्शी में उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है | 3. अवतल दर्पण का उपयोग : बडी फोकस दूरी का अवतल दर्पण दाढी बनाने के काम में आता है, आँख, नाक, कान एवं गले के जांच के काम में आता है | गाडी के हेडलाइट, सर्च लाइट, एवं सोलर कुकर तथा टार्च में इसका उपयोग किया जाता है |
*समतल दर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है | यह प्रतिबिम्ब काल्पनिक, वस्तु के बराबर एवं पार्श्व उल्टा होता है | समतल दर्पण में वस्तु का पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई वस्तु की लम्बाई से कम से कम आधी होनी चाहिए |
*उत्तल दर्पण में प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे, उस के ध्रुव एवं फोकस के बीच वस्तु से छोटा, सीधा एवं आभासी बनता है |
*अवतल दर्पण के फोकस और ध्रुव के बीच स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब सीधा, आभासी एवं बडा बनता है | अवतल दर्पण सदा अपसारी होता है | यदि किसी वस्तु को दर्पण के निकट रखने पर सीधा प्रतिबिम्ब बने तथा दूर रखने पर वास्तविक प्रतिबिम्ब बने तो वह दर्पण अवतल होगा |
*प्राथमिक इंद्रधनुष : जब वर्षा की बूंदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन एवं एक बार परावर्तन होता है तो प्राथमिक इंद्र धनुष का निर्माण होता है | इसमें लाल रंग बाहर की ओर एवं बैगनी रंग अंदर की ओर होता है |
*द्वितीयक इंद्रधनुष : जब वर्षा की बूंदों पर आपतित होने वाली सूर्य-किरणों का दो बार अपवर्तन एवं दो बार परावर्तन होता है, तो द्वितीयक इंद्रधनुष का निर्माण होता है | इसमें बाहर की ओर बैगनी रंग एवं अंदर की ओर लाल रंग होता है |
*वस्तुओं का रंग : वस्तु जिस रंग का दिखाई देती है, वह वास्तव में उसी रंग को परावर्तित करती है, तथा शेष सभी रंग को अवशोषित कर लेती है | जो वस्तु सभी रंग को परावर्तित कर देती है वह सफेद दिखाई देती है, क्योकि सभी रंगों का मिश्रण प्रभाव सफेद होता है | जो वस्तु सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है, वह काली दिखाई पड़ती है |
*लाल, हरा एवं नीला रंग को प्राथमिक रंग कहते हैं, इन्ही रंगों का प्रयोग कलर टेलीविजन में किया जाता है |
*कांच में बैगनी रंग के प्रकाश का वेग सबसे कम तथा अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है, तथा लाल रंग का वेग सबसे अधिक एवं अपवर्तनांक सबसे कम होता है |
*लेंस : लेंस का मुख्य कार्य प्रकाश किरणों को मोड़ना है | कोई लेंस प्रकाश किरणों को जितना अधिक मोड़ता है उतनी ही अधिक क्षमता वाला कहा जाता है | कम फोकस-दूरी वाले लेंस अधिक फोकस-दूरी वाले लेंस की तुलना में प्रकाश किरणों को अधिक मोड़ता है, अर्थात लेंस की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है | अत: P =  या , P =  डायोप्टर |
*लेंस की क्षमता का मात्रक डायोप्टर होता है |
*उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है |
*यदि दो लेंसों को परस्पर सटा कर रख दें, तो उनकी क्षमताएं जुड़ जाती हैं तथा संयुक्त लेंस की क्षमता दोनों लेंस के बराबर होती है | संयुक्त लेंस की फोकस दूरी का सूत्र – 1/f = 1/f1 + 1/f2 होता है |
*लेंस का सूत्र :  होता है |
*उत्तल एवं अवतल लेंस की पहचान : 1. स्पर्श द्वारा : उत्तल लेंस किनारे की अपेक्षा बीच में मोटा तथा अवतल लेंस किनारे की अपेक्षा बीच में पतला होता है | 2. प्रतिबिम्ब के द्वारा : दूर की वस्तु को देखने पर उत्तल लेंस में प्रतिबिम्ब उल्टा तथा छोटा दिखाई देता है, जबकि अवतल लेंस में प्रतिबिम्ब सीधा तथा छोटा दिखाई देता है |
*निकट की वस्तु जैसे-कागज पर मुद्रित अथवा लिखित अक्षर उत्तल लेंस से बड़े आकार में दिखाई देते हैं, जबकि अवतल लेंस द्वारा ये अक्षर छोटे दिखाई देते हैं |
*यदि दूर की या निकट की वस्तु जैसी है वैसी ही, न छोटी, न बडी, न उल्टी दिखाई दे तो माध्यम के दोनों पृष्ठ समांतर होंगे, अर्थात यह लेंस न होकर कांच की समांतर पट्टिका होगी |
*मानव एवं जन्तुओं के नेत्रों मे बाहरी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब, नेत्र के भीतर स्थित उत्तल लेंस द्वारा बनता है |
*उत्तल लेंस सदा अभिसारी होता है |
*लेंस में प्रकाश का अपवर्तन होता है |
*मानव नेत्र : मानव नेत्र द्वारा वस्तुओं से आने वाले प्रकाश के नेत्र में स्थित लेंस द्वारा अपवर्तन के कारण, नेत्र के पीछले भाग में स्थित रेटिना पर वास्तविक, उल्टे तथा छोटे प्रतिबिम्ब बनते हैं |
*नेत्र से देखते समय वस्तु नेत्र की लेंस के फोकस-दूरी के दुगुने से अधिक (2f से अधिक) दूरी पर होती है |
*आँख का रंग आइरिस के रंग पर निर्भर करता है |
*आइरिस मे एक छिद्र होता है, जिसे पुतली कहते हैं | पुतली प्रकाश में स्वत: छोटी एवं अंधकार में बड़ी हो जाती है |
*दृष्टि दोष के प्रकार : 1. निकट दृष्टि दोष या मायोपिया, 2. दूर दृष्टि दोष अथवा हाइपर मेट्रोपिया, 3. जरा दृष्टि दोष |
* निकट दृष्टि दोष या मायोपिया : इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को नजदीक की वस्तु दिखाई पड़ती है, परंतु दूर स्थित वस्तु को नहीं देख पाता है | कारण : 1. लेंस की गोलाई बढ़ जाती है | 2. लेंस की फोकस दूरी घट जाती है | 3. लेंस की क्षमता बढ़ जाती है | इसी कारण वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर रेटिना के आगे बनता है | निवारण : निकट दृष्टि दोष के निवारण हेतु अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है |
*दूर दृष्टि दोष : इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को दूर की वस्तु दिखाई पड़ती है, परंतु निकट की वस्तु नहीं दिखाई पड़ती है | कारण : 1. लेंस की गोलाई कम हो जाते है | 2. लेंस की फोकस-दूरी बढ़ जाती है | 3. लेंस की क्षमता घट जाती है | इस रोग में निकट की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है | निवारण : इस दोष के निवारण हेतु उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है |
*जरा दृष्टि दोष : वृद्धावस्था के कारण आँख की सामंजस्य क्षमता घट जाती है या समाप्त हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति न तो दूर और न ही निकट की वस्तु देख सकता है, इसे जरा दृष्टि दोष कहते हैं | निवारण : इस रोग के निवारण के लिए द्विफोकसी लेंस (उभयातल लेंस) या बाई फोकल लेंस का उपयोग किया जाता है |
*सरल-सूक्ष्मदर्शी कम फोकस-दूरी का उत्तल लेंस होता है |
*संयुक्त-सूक्ष्मदर्शी में एक ही अक्ष पर दो उत्तल लेंस लगे होते हैं |
*दूरदर्शी में दो उत्तल लेंस होते हैं |
*दर्शन कोण जितना छोटा होता है, वस्तु उतनी ही छोटी दिखाई पड़ती होती है |
*हीरा का चमकना तथा मृग मरीचिका का बनना पूर्ण आंतरिक परिवर्तन के कारण होता है |
*पानी के अंदर हवा का बुलबुला अवतल लेंस की भांति कार्य करता है |
*अवतल दर्पण में वास्तविक एवं काल्पनिक दोनों प्रतिबिम्ब बनते हैं |
*उत्तल दर्पण में केवल काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनते हैं |
*काल्पनिक प्रतिबिम्ब हमेशा सीधा बनता है |
*वास्तविक प्रतिबिम्ब हमेशा उल्टा बनता है |
*अवतल दर्पण का काल्पनिक प्रतिबिम्ब हमेशा वस्तु से बड़ा एवं उत्तल दर्पण का काल्पनिक प्रतिबिम्ब हमेशा वस्तु से छोटा बनता है |
*चलचित्र में प्रति सेकेंड 24 चित्र दिखाये जाते हैं |
*उत्तल लेंस को Reading lens भी कहते हैं |
*प्रकाश के व्यक्तिकरण के कारण साबुन के बुलबुलों का रंग रंगीन दिखाई देता है |
*प्रकाश तरंगों का प्रकाशीय प्रभाव केवल विद्युत – क्षेत्र के कारण होता है |
*आकाश तथा समुद्र का रंग प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण नीला प्रतीत होता है
*प्रकाश किरणों की प्रकृति तरंग एवं कण दोनों के समान होती है |
*प्रकाश सीधी रेखा में चलता प्रतीत होता है, क्योंकि इसकी तरंग दैर्ध्य बहुत छोटी होती है |
*जब प्रिज्म से प्रकाश किरण गुजरती है तथा रंगों का जो समूह उत्पन्न होता है उसे वर्णक्रम कहते हैं |
*हीरे रात में चमकते हैं, क्योंकि उच्च अपवर्तनांक के कारण प्रकाशिकी किरणें आंतरिक रूप से परावर्तित होती हैं |
*ज्योति फ्लक्स का मात्रक ल्यूमेन होता है |
*इद्रधनुष में लाल रंग का विक्षेपण अधिक होता है |
*दो समांतर दर्पणों के बीच धातु के एक गोले को रखा जाता है, इसमें बने प्रतिबिम्बों की संख्या असंख्य होगी |
*तारों के टिमटिमाने का कारण वातावरणीय अपवर्तन होता है |
*टी.वी.रिमोट में एक छोटा ट्रांसमीटर होता है जिससे अवरक्त सिग्नल निकलता है |
*आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा का नियंत्रण परितारिका के द्वारा होता है |
*मानव आँख हरा प्रकाश के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील होती है |
*जल के अंदर वायु का बुलबुला अपसारी (अवतल लेंस) लेंस की भाँति कार्य करता है |
*समतल दर्पण 120  कोण पर झुके हैं,तो उनके बीच रखी वस्तु के प्रतिबिम्बों की संख्या तीन होगी |
*दृष्टिपटल (रेटिना) पर जो चित्र बनता है वह वस्तु से छोटा व उल्टा होता है |
*जब किसी दर्पण को  कोण से घूर्णित किया जाये,तो परावर्तित किरण का घूर्णन 2  होगा |
*प्रकाश तंतु पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है |
*एक चश्मे के लेंस की फोकस दूरी -50 सेमी.है, इसकी क्षमता -2D होगी |
*विद्युत चुम्बकीय तरंग एवं प्रकाश तरंग का वेग समान होता है |
*होलोग्राम किसी वस्तु का त्रिविमीय चित्र होता है |
*एक तरंग की आवृत्ति 120Hz है, यदि तरंग की चाल 480 मी./से. हो, तो उसकी तरंग दैर्ध्य 4 मी. होगी |
*एक संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में अभिदृश्यक एवं नेत्रिका की आवर्धन क्षमताएं क्रमश: m1 एवं  m2 हैं, सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता m1   m2  होगी |
*किसी भी खोखले चालक के अंदर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है | यदि ऐसे चालक को आवेशित किया जाए तो सम्पूर्ण आवेश उसके बाहरी पृष्ठ पर ही रहता है | अत: खोखला गोला एक विद्युत परिक्षक का कार्य करता है | यहीं कारण है कि यदि किसी कार पर तड़ित विद्युत गिर जाये तो कार के अंदर बैठे व्यक्ति पूर्ण सुरक्षित: होते हैं | तड़ित से प्राप्त आवेश कार की बाहरी सतह पर ही रहता है | 
*विद्युत विभव एवं विभवांतर दोनों ही अदिश राशियां हैं, दोनो का एस.आई.मात्रक वोल्ट होता है |
*विद्युत धारा : किसी चालक में विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं | विद्युत धारा की दिशा धन आवेश की गति की दिशा की ओर मानी जाती है | इसका एस.आई. मात्रक एम्पियर है | यह एक अदिश राशि है |
*विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा प्रोटॉन के प्रवाह की दिशा एवं इलेक्ट्रॉन के प्रवाह के विपरीत दिशा की ओर होती है |
*अमीटर विद्युत धारा मापता है |
*विद्युत धारिता का एस.आइ.मात्रक फैराड होता है |
*एक आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होना चाहिए | इसे श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है |
*एक आदर्श वोल्ट मीटर का प्रतिरोध अनंत होना चाहिए | इसे समानांतर क्रम में जोड़ा जाता है |
*गैल्वेनोमीटर विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति बताने वाला यंत्र है
*ट्रांसफार्मर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करने वाला यंत्र है | यह केवल प्रत्यावर्ती धारा (ए.सी.) के लिए प्रयुक्त किया जाता है |
*ए.सी.डायनेमों या जनरेटर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है |
*प्रत्यावर्ती जनित्र से दिष्ट धारा प्राप्त करने के लिए उसमें कम्यूटेटर लगाया जाता है |
*विद्युत मोटर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य नहीं करता है |
*माइक्रोफोन विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित होता है |
*दो आवेशों के बीच की दूरी दुगुनी करने में उनके बीच का बल चौथाई हो जाता है |
*प्रतिरोध का एस.आइ.मात्रक ओम () होता है |
*ताप बढ़ने पर चालक का प्रतिरोध बढ़ता है |
*ताप बढ़ने पर अर्द्धचालक का प्रतिरोध घटता है |
*चालक का प्रतिरोध चालक की लम्बाई के समानुपाती होता है |
*चालक का प्रतिरोध अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है |
*चाँदी सबसे अच्छा चालक होता है, इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉन की अधिकता होती है |
*सेरामिक्स सबसे अच्छा अचालक है, अचालक मे मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं
*घरों मे आने वाली प्रत्यावर्ती धारा का विभव प्रत्येक चक्र में +311 वोल्ट से ‌-311 वोल्ट तक बदल जाता है |
*सूखे मानव शरीर का प्रतिरोध लगभग 50,000 एवं भींगे शरीर का प्रतिरोध लगभग 10,000 होता है |
*मानव शरीर को झटका पैदा करने के लिए  A विद्युत धारा काफी है | अर्थात् 50V विभवांतर से कम विभवांतर की धारा झटका उत्पन्न नहीं करेगी
*विद्युत विभवान्तर का मात्रक जूल/कूलाम होता है, इसे वोल्ट भी कहते हैं |
*जूल ऊर्जा का बहुत छोटा मात्रक है, विद्युत ऊर्जा की माप के लिए एक बडे मात्रक किलोवाट-घण्टा का उपयोग किया जाता है | इसे यूनिट भी कहते हैं
*1 किलो वाट घंटा = 3.6 106  जूल |
*1 कूलम्ब आवेश = 6.25 1018 इलेक्ट्रान
*संघारित्र वह युक्ति है, जिसमें विद्युत् ऊर्जा एकत्र की जाती है |
*बल्ब के भीतर टंगस्टन धातु का बना सूक्ष्म तंतु होता है | टंगस्टन का गलनांक 3500  होता है |
*साधारण बल्ब दी गई ऊर्जा का केवल 5 से 10% भाग ही प्रकाश ऊर्जा मे परिवर्तित करता है |
*साधारण कोटि के तथा कम सामार्थ्य के बल्बों के भीतर निर्वात होता है | उच्च सामर्थ्य के बल्बों में नाइट्रोजन तथा आर्गन गैसों का मिश्रण भरा होता है
*बल्ब से वायु निकाल दी जाती है क्योंकि तंतु के गर्म होने पर वह वायु की आक्सीजन से संयोग करके जल जायेगा |
*नाइट्रोजन तथा आर्गन निष्क्रिय गैस होने के कारण इनकी उपस्थिति में तंतु नहीं जलता है |
*ट्यूब लाइट की दीवारों पर जिंक फास्फाइड का लेप चढ़ा होता है | ट्यूब के अंदर अक्रिय गैस जैसे आर्गन को कुछ पारे के साथ भरा जाता है |
*हीटर में विद्युतरोधी पदार्थ जैसे प्लास्टर ऑफ पेरिस की एक खॉचेदार प्लेट होती है, जिसमें मिश्र धातु नाइक्रोम की कुण्डली का प्रयोग होता है |
*विजली की इस्तरी में नाइक्रोम का तार अभ्रक की चादर पर लिपटा रहता है |
*नाइक्रोम का विशिष्ट प्रतिरोध बहुत अधिक होता है तथा वायु की आक्सीजन के साथ शीघ्र आक्साइड नहीं बनाता है |
*नाइक्रोम, निकेल और क्रोमियम का मिश्र धातु है |
*मुक्त विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो धनायन कैथोड की ओर एवं ऋणायन एनोड की ओर चलने लगते हैं |
*फ्यूज के रूप में मुख्य लाइन के साथ श्रेणी क्रम में कम गलनांक तथा अधिक प्रतिरोध का एक पतला तार लगाते हैं |
*फ्यूज तार प्राय: टिन (रांगा) और तांबे का बना होता है |
*घरेलू परिपथ में सामान्यत: 5A एवं 10A का फ्यूज उपयोग में लाया जाता है
*दिष्ट धारा (डी.सी.) जनित्र से किसी परिपथ में प्रवाहित धारा का मान बदलता रहता है परंतु दिशा नहीं बदलती है |
*प्रत्यावर्ती धारा (ए.सी.) का मान एवं दिशा दोनों परिवर्तनीय होते हैं |
*ट्रांसफार्मर का क्रोड नर्म लोहे का बना होता है |
*किरचॉफ का नियम A.C. और D.C. दोनों मे लागू हो सकता है |
*100 वाट का विजली बल्ब 10 घण्टे में, 1 इकाई विजली खर्च करेगा |
*एक कार बैट्री में प्रयुक्त विद्युत अपघट्य सल्फ्यूरिक अम्ल होता है |
*फ्यूज विद्युत के उष्मीय सिद्धांत पर आधारित होता है |
*एक ट्रांसफॉर्मर वोल्टता (विभवांतर) बदलने का कार्य करता है |
*किसी तार का विशिष्ट प्रतिरोध तार के पदार्थ पर निर्भर करता है |
*चार्ज की मात्रा की इकाई एम्पियर घण्टा होती है |
*धारा वाहक कुण्डली में ऊर्जा चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में संग्रहीत होती है |
*एक-दूसरे के समांतर एक ही दिशा में गतिमान दो इलेक्ट्रॉन धाराएँ एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं |
*शुष्क सेल में कार्बन की छड़ एनोड का कार्य करती है |
*परिशोधक का प्रयोग उष्मा-ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिए किया जाता है |
*आर्क वेल्डिंग के लिए 200 से 250v D.C. वोल्टता की आवश्यकता होती है
*एक हीटर का नियतांक 2.2 किलोवाट और 220 वोल्ट है, तो इसका प्रतिरोध 22 होगा |
*जब किसी छड़ को चमड़े से रगड़ा जाता है, तो छड़ पर धन आवेश आता है |
*लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण का परिणाम है |
*घरों में आने वाली विद्युत की आवृत्ति 50Hz होती है |
*ट्रांसफॉर्मर में अधिकतम दक्षता के लिए, आर्मेचर ताम्र हानियाँ = स्थिर हानि होनी चाहिए |
*D.C.जनरेटर मे प्रवर्तक, आर्मेचर में सामांतर क्रम में लगाये जाते हैं |
*दिष्ट धारा जनित्र फैराडे के सिद्धांत पर कार्य करता है |
*132 Kv की संचरण लाइनों के लिए जालीनुमा खंभे प्रयुक्त किये जाते हैं |
*सौर सेल फोटो वोल्टाइक सेल के सिद्धांत पर कार्य करता है |
*इंडक्शन वाटमीटर ए.सी. में प्रयोग किया जाता है |
*परम शून्य तापमान पर अर्द्धचालकों में विद्युत प्रतिरोध अनंत हो जाता है |
*रमन प्रभाव का प्रकाश की उन किरणों से सम्बंध है, जो केवल प्रिज्मों के आर-पार जाती हैं |
*सामान्य ट्यूबलाइट में आर्गन के साथ मरकरी वेपर गैस भरी होती है |
*फ्लोरेसेंट ट्यूब (प्रतिदीप्ति बल्ब) में मरक्यूरिक ऑक्साइड और निऑन गैस भरी होती है |
*प्रतिदीप्ति नलिकाओं के साथ चोक आसंजित होता है, क्योंकि चोक कुण्डली लाइन वोल्टता बढ़ाती है |
*फ्लेमिंग का बाम-हस्त नियम जनित्र पर लागू होता है |
*डायनेमों का आर्मेचर लौह-चुम्बकीय पदार्थ से बना होता है |
*शार्ट सर्किट की स्थिति में ट्रांसफॉर्मर की दक्षता शून्य होगी |
*विद्युत परिपथों को ताप-वैद्युत युग्म द्वारा अतितापन से बचाया जा सकता है |
*एक वोल्ट एक जूल प्रति कूलॉम के बराबर होता है |
*एक चालक में Y सेकेंड के लिए X ऐम्पियर धारा प्रवाहित होती है, उस चालक में xy कूलॉम आवेश प्रवाहित होगा |
*भवर धारा हानियों को कम करने हेतु ट्रांसफॉर्मर क्रोड को परतदार बनाया जाता है |
*दो भिन्न धातु प्लेटों को एक विद्युत अपघट्य में निमज्जित किया जाता है, प्लेटों के बीच कार्यकारी विद्युत वाहक बल प्लेटों के क्षेत्रफल पर निर्भर करेगा |
*घरों में विद्युत की पूर्ति 220 वोल्ट पर की जाती है, इसमें 220 वोल्ट शीर्ष वोल्टेज को प्रदर्शित करता है |
*मैगर द्वारा अति निम्न प्रतिरोध को मापा जाता है |
*घरों मे पंखे और लैम्प तथा सड़क किनारे लैम्प समांतर क्रम में लगाये जाते हैं
*वैद्युत ऊर्जा = शक्ति  समय |
*ओम का नियम अर्द्ध चालकों पर लागू नहीं होता है |
*एक स्टोरेज बैटरी का विद्युत वाहक बल इलेक्ट्रोड की प्रकृति पर निर्भर करता है |
*D.C.का उपयोग विच्छेदन, विद्युत अपघटन तथा विद्युत चुम्बक इत्यादि बनाने में होता है |
*1000 वॉट 200 वोल्ट वाली विद्युत इश्तरी की तापन कुण्डली का प्रतिरोध 40 होता है |
*100 वॉट 220 वोल्ट वाली एक विद्युत बत्ती में विद्युत धारा 5/11 ऐम्पियर होगी |
*15 वोल्ट वि.वा.बल की बैटरी से जुड़े एक प्रतिरोध में 2 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है, इस परिपथ से 5 सेकेंड के बाद 75 जूल ऊर्जा विसरित होगी |
*तीन प्रतिरोधक, प्रत्येक 2, एक त्रिभुज की भाँति जोड़े जाते हैं, किन्ही दो कोणों के बीच का प्रतिरोध 4/3 होगा |
*तीन प्रतिरोधक R1 , R2 , R3 श्रेणी क्रम में इस प्रकार जुड़े हैं कि R1  R2  R3 तो R1 में शक्ति व्यय अधिकतम होगा |
*100 वाट् 250 वोल्ट चिन्हित बल्ब से 0.4 A धारा प्रवाहित होती है |
*एक 55 वाट् के लैम्प को 220 वोल्ट के मुख्य तार से संयोजित किया जाता है, लैम्प में धारा 0.25 ऐम्पियर होगी |
*अगर प्रतिरोध श्रेणी क्रम में लगे हों, तो समतुल्य प्रतिरोध R = R1 + R2 + R3 +…….. होगा |
*अगर प्रतिरोध समांतर क्रम में लगे हों, तो समतुल्यप्रतिरोध 1/R = 1/R1 + 1/R2 + 1/R3 +……… होगा |
*2 – 2 ओम के दो प्रतिरोधों का तुल्य प्रतिरोध 2 + 2 = 4 होगा |
*15, 20 तथा 30 के प्रतिरोध समांतर क्रम में लगे हैं, तो इनका तुल्य प्रतिरोध 60/9 होगा |
*दो प्रतिरोध 3 और 6 समानांतर में जुड़े हों, तो समतुल्य प्रतिरोध 2 होगा |
*R प्रतिरोध के तार को n बराबर भागों में काटा जाता है, फिर इन को समांतर क्रम में जोड़ा जाता है, इसका तुल्य प्रतिरोध R/n2 होगा |
*चुम्बक में आकर्षण, विकर्षण एवं निर्देशन का गुण होता है |
*प्राकृतिक चुम्बक कोहे का आक्साइड, मैग्नेटाइट (Fe3O4) होता है |
*चुम्बक के सिरों के समीप चुम्बकत्व सबसे अधिक होता है | ये चुम्बक के ध्रुव कहलाते हैं | चुम्बक के ठीक मध्य में चुम्बकत्व नहीं होता है |
*अकेले चुम्बकीय ध्रुव का कोई अस्तित्व नहीं होता है |
*चुम्बक के विजातीय ध्रुव के बीच आकर्षण तथा सजातीय ध्रुव के बीच विकर्षण होता है |
*चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता एक सदिश राशि है, इसका मात्रक गॉस या न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर अथवा वेबर/मी2 या टेसला होता है |
*चुम्बक वाहक बल की इकाई ऐम्पीयर फेरो होती है |
*चुम्बकीय बल रेखाएं उत्तरी ध्रुव से निकलती है और दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होती है |
*प्रति चुम्बकीय पदार्थों की चुम्बकशीलता बहुत कम होती है |
*सबसे शक्तिशाली नाल चुम्बक होता है |
*अस्थाई चुम्बक बनाने के लिए नर्म लोहे का प्रयोग किया जाता है |
*स्थाई चुम्बक बनाने के लिए स्पात (steel) का प्रयोग किया जाता है |
*चुम्बक को स्वतंत्रता पूर्वक लटकाने पर वह सदैव उत्तर-दक्षिण दिशा में रूकता है |
*हथौडे से पीटने एवं गर्म कर लाल करने से चुम्बकत्व समाप्त हो जाता है |
*यदि चुम्बक को इस प्रकार से रखा जाए कि उसका उत्तरी ध्रुव दक्षिण दिशा में रहे और दक्षिणी ध्रुव उत्तर दिशा में रहे, तो कुछ दिनों में चुम्बक का चुम्बकत्व समाप्त हो जायेगा |
*यंत्रों को बाहरी मैग्नेटिक फिल्ड से बचाने के लिए काँच के आवरण का प्रयोग किया जाता है |
*मुक्त रूप से लटकती चुम्बकीय सुई का अक्ष भौगोलिक अक्ष के साथ 18  का कोण बनाता है |
*पृथ्वी एक प्राकृतिक चुम्बक का कार्य करता है |
*एक हल्के चुम्बक को उत्तरी ध्रुव पर लाया जाए एवं एक रस्सी द्वारा इसके मध्य बिंदु से लटकाया जाए, तो इसका उत्तरी ध्रुव ऊपर की ओर इंगित करेगा
*एक चुम्बक में चुम्बकत्व इलेक्ट्रॉनों की प्रचक्रण गति के कारण होता है |
*दो चुम्बकों के बीच की दूरी आधा कर दी जाये, तो दोनों चुम्बकों के बीच आकर्षण या विकर्षण उनके मूल मान का 2 गुना हो जायेगा | 
                                                                                                                   

1 टिप्पणी:

  1. अपने जो किया है ये सर उसके लिये कोटि कोटि नमन है सर जी आपके लिए जितना कहा जाय कम ही होगाबहुत बहुत धन्यवाद सर जी

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