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समास
*****
समास
******
समास का शाब्दिक अर्थ है छोटा रूप। अतः जब दो या दो अधिक शब्द अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर
जो छोटा रूप् बनाते है, उसे समास, सामाजिक शब्द समास पर कहते है।
सामाजिक पदों को अलग करना समास विग्रह कहलाता है।
समास छः प्रकार के होते है –
1. अव्यवी समास 2. तत्पुरूष समास
3. द्वन्द्व समास 4. बहुव्रीहि समास
5. द्विगुसमास 6. कर्म धारय समास
1. अव्ययी समास: – प्रथम पद प्रधान होता है या पूरा पद अव्यय होता है। यदि शब्दों की पुनरावृति हो।
उदाहरण:-
सामाजिक शब्द/पद समास विग्रह
यथा शक्ति शक्ति के अनुसार
यथा क्रम क्रम के अनुसार
यथेच्छाा इच्छा के अनुसार
प्रतिदिन प्रत्येक दिन
प्रत्येक हर-एक
प्रत्यक्ष अक्षि के समान
यथार्थ जैसा वास्तव में अर्थ है
आमरण मरण तक
आजीवन जीवन भर
प्रतिदिन प्रत्येक दिन
प्रतिक्षण प्रत्येक क्षण
यावज्जीवन जब तक जीवन है
लाजवाब जिसका जबाब न हो
भर तक सक भर
दुस्तर जिसको तैराना कठिन हो
अत्यधिक उत्तम से अधिक
प्रतिषत प्रत्येक सौ पर
प्रत्याघात घात के बदले आघात
मरणोपरांत मरण के उपंरात
दिन भर पूरे दिन
भर पेट पेट भरकर
अवसरानुसार अवसर के अनुसार
सषर्त शर्त के अनुसार
हरवर्ष प्रत्येक वर्ष
नीरव बिना ध्वनि के
सपत्नीक पत्नी के साथ
पहले पहल सबसे पहल
चेहरे चेहरे हर चेहरे पर
– वे उदाहरण जिसमें पहला पद उपसर्ग या अव्यय न होकर संज्ञा या विषेषण शब्द होता है, ये
संज्ञा विषेषण शब्द अन्यत्र तो लिंग वचन कारक में अपना रूप लेते है किंतु समास मंे आने पर उनका रूप स्थिर
रहता है।
विवेक-पूर्ण विवेक के साथ
भागम भाग भागने के बाद भाग
मंद भेद मंद के बाद मंद
हाथों हाथ हाथ ही हाथ में
कुषलतापूर्वक कुषलता के साथ
घर-घर घर के बाद घर
दिनों- दिन दिन के बाद दिन
घड़ी-घड़ी घड़ी के बाद घड़ी
2. तत्पुरूष समासः- में दूसरा प्रधान होता है इसमें प्रथम पद विषेषण व दुसरा शब्द विषेष्य का कार्य
करता है।
समास
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समास
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समास का शाब्दिक अर्थ है छोटा रूप। अतः जब दो या दो अधिक शब्द अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर
जो छोटा रूप् बनाते है, उसे समास, सामाजिक शब्द समास पर कहते है।
सामाजिक पदों को अलग करना समास विग्रह कहलाता है।
समास छः प्रकार के होते है –
1. अव्यवी समास 2. तत्पुरूष समास
3. द्वन्द्व समास 4. बहुव्रीहि समास
5. द्विगुसमास 6. कर्म धारय समास
1. अव्ययी समास: – प्रथम पद प्रधान होता है या पूरा पद अव्यय होता है। यदि शब्दों की पुनरावृति हो।
उदाहरण:-
सामाजिक शब्द/पद समास विग्रह
यथा शक्ति शक्ति के अनुसार
यथा क्रम क्रम के अनुसार
यथेच्छाा इच्छा के अनुसार
प्रतिदिन प्रत्येक दिन
प्रत्येक हर-एक
प्रत्यक्ष अक्षि के समान
यथार्थ जैसा वास्तव में अर्थ है
आमरण मरण तक
आजीवन जीवन भर
प्रतिदिन प्रत्येक दिन
प्रतिक्षण प्रत्येक क्षण
यावज्जीवन जब तक जीवन है
लाजवाब जिसका जबाब न हो
भर तक सक भर
दुस्तर जिसको तैराना कठिन हो
अत्यधिक उत्तम से अधिक
प्रतिषत प्रत्येक सौ पर
प्रत्याघात घात के बदले आघात
मरणोपरांत मरण के उपंरात
दिन भर पूरे दिन
भर पेट पेट भरकर
अवसरानुसार अवसर के अनुसार
सषर्त शर्त के अनुसार
हरवर्ष प्रत्येक वर्ष
नीरव बिना ध्वनि के
सपत्नीक पत्नी के साथ
पहले पहल सबसे पहल
चेहरे चेहरे हर चेहरे पर
– वे उदाहरण जिसमें पहला पद उपसर्ग या अव्यय न होकर संज्ञा या विषेषण शब्द होता है, ये
संज्ञा विषेषण शब्द अन्यत्र तो लिंग वचन कारक में अपना रूप लेते है किंतु समास मंे आने पर उनका रूप स्थिर
रहता है।
विवेक-पूर्ण विवेक के साथ
भागम भाग भागने के बाद भाग
मंद भेद मंद के बाद मंद
हाथों हाथ हाथ ही हाथ में
कुषलतापूर्वक कुषलता के साथ
घर-घर घर के बाद घर
दिनों- दिन दिन के बाद दिन
घड़ी-घड़ी घड़ी के बाद घड़ी
2. तत्पुरूष समासः- में दूसरा प्रधान होता है इसमें प्रथम पद विषेषण व दुसरा शब्द विषेष्य का कार्य
करता है।
समास
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लुप्त-कारक समास में कारक की विभक्तियों का लोप होता है सिर्फ कर्ता व सम्बोधन को छोड़कर शेष
सभी कारक की विभक्तियों का लोप हो जाता है।
कर्म तत्पुरूष समास ( को विभक्ति का लोप) –
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग को प्राप्त
चिड़ीमार चिड़ी को मारने वाला
तिलकुटा तिल को कूटकर बनाया हुआ
प्राप्तोदक उदक को प्राप्त
कृष्णार्पण कृष्ण को अर्पण
जेबकतरा जेब को कतरने वाला
हस्तगत हस्त को गया हुआ
गिरहकट गाँठ को काटने वाला
गगन चुंबी गगन को चूमने वाला
कर्णतत्पुरूष:- ‘सेः का लोप या द्वारा का लोप, जुड़ने का भाव। हस्त लिखित, रेखांकित, अकाल पीड़ित,
रत्नजड़ित, बाढ़ग्रस्त, तुलसीकृत, ईष्चरदत्त, नीतियुक्त।
सम्प्रदान तत्पुरूष:- ‘ के ‘ लिए ‘ का ‘ लोप ।
देषभक्ति, रसोईद्यर, गुरूदक्षिणा, सत्याग्रह, दानपात्र, डाकद्यर, छात्रावास, चिकित्सालय।
अपादन तत्पुरूष:- ‘ से ‘ (अलग होना) का लोप।
गुणरहित, देषनिकाला, पथभ्रष्ट, पापमुक्त, धर्मविमुख, नगरागत ।
सम्बन्ध तत्पुरूषः- ‘ का, की, के ‘ का लोप ।
राजपुत्र, सूर्यास्त, संसदसदस्य, गंगाजल, दीपषिखा, शास्त्रानुकूल ।
अधिकरण तत्पुरूष:- ‘ में ‘ पर का लोप ।
रथारूढ़, आपबीति, पदासीन, शीर्षस्थ, स्वर्गवास, लोकप्रिय, ब्रह्मलीन, देषाटन, शरणागत।
अन्य भेद
अलुक तत्पुरूष:- कारक चिह्न या विभक्ति का किसी न किसी रूप में मौजूद रह जाना । जैसे:- धनंजय, मृत्युंजय,
मनसिज ।
नञ तत्पुरूष:- अंतिम शब्द प्रत्यय होता है और इस प्रत्यय का स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता है। जलज
– जल ़ ज
लुप्तपद तत्पुरूष/मध्यपद लोपी तत्पुरूष:- कारक चिह्नों के साथ शब्दों का भी लोप हो जाता है ।
दही बड़ा:- दही में डूबा हुआ बड़ा,
मालगाड़ी:- माल ले जाने वाली गाड़ी
पवनचक्की:- पवन से चलने वाली चक्की
3. कर्मधारय समास: – इसमें दूसरा पद प्रधान होता है तथा दोनों पदों में उपमेय-उपमान अथवा विषेषण-
विषेष्य का सम्बन्ध होता है।
नीलकमल में – नील (विषेषण) तथा कमल (विषेष्य) है।
महासागर, महापुरूष, शुभागमन, नवयुवक, अल्पाहार, भलामानुष, बहुसंख्यक(हिन्दु), बहुमूल्य, भ्रष्टाचार,
शीतोष्ण- शीत है जो उष्ण है।
उपमेय-उपमान:- चन्द्रमुख, कमलनयन, मृगनयनी-मृग, के नयनों के समान नयन है जिसके, कंजमुख
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लुप्त-कारक समास में कारक की विभक्तियों का लोप होता है सिर्फ कर्ता व सम्बोधन को छोड़कर शेष
सभी कारक की विभक्तियों का लोप हो जाता है।
कर्म तत्पुरूष समास ( को विभक्ति का लोप) –
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग को प्राप्त
चिड़ीमार चिड़ी को मारने वाला
तिलकुटा तिल को कूटकर बनाया हुआ
प्राप्तोदक उदक को प्राप्त
कृष्णार्पण कृष्ण को अर्पण
जेबकतरा जेब को कतरने वाला
हस्तगत हस्त को गया हुआ
गिरहकट गाँठ को काटने वाला
गगन चुंबी गगन को चूमने वाला
कर्णतत्पुरूष:- ‘सेः का लोप या द्वारा का लोप, जुड़ने का भाव। हस्त लिखित, रेखांकित, अकाल पीड़ित,
रत्नजड़ित, बाढ़ग्रस्त, तुलसीकृत, ईष्चरदत्त, नीतियुक्त।
सम्प्रदान तत्पुरूष:- ‘ के ‘ लिए ‘ का ‘ लोप ।
देषभक्ति, रसोईद्यर, गुरूदक्षिणा, सत्याग्रह, दानपात्र, डाकद्यर, छात्रावास, चिकित्सालय।
अपादन तत्पुरूष:- ‘ से ‘ (अलग होना) का लोप।
गुणरहित, देषनिकाला, पथभ्रष्ट, पापमुक्त, धर्मविमुख, नगरागत ।
सम्बन्ध तत्पुरूषः- ‘ का, की, के ‘ का लोप ।
राजपुत्र, सूर्यास्त, संसदसदस्य, गंगाजल, दीपषिखा, शास्त्रानुकूल ।
अधिकरण तत्पुरूष:- ‘ में ‘ पर का लोप ।
रथारूढ़, आपबीति, पदासीन, शीर्षस्थ, स्वर्गवास, लोकप्रिय, ब्रह्मलीन, देषाटन, शरणागत।
अन्य भेद
अलुक तत्पुरूष:- कारक चिह्न या विभक्ति का किसी न किसी रूप में मौजूद रह जाना । जैसे:- धनंजय, मृत्युंजय,
मनसिज ।
नञ तत्पुरूष:- अंतिम शब्द प्रत्यय होता है और इस प्रत्यय का स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं होता है। जलज
– जल ़ ज
लुप्तपद तत्पुरूष/मध्यपद लोपी तत्पुरूष:- कारक चिह्नों के साथ शब्दों का भी लोप हो जाता है ।
दही बड़ा:- दही में डूबा हुआ बड़ा,
मालगाड़ी:- माल ले जाने वाली गाड़ी
पवनचक्की:- पवन से चलने वाली चक्की
3. कर्मधारय समास: – इसमें दूसरा पद प्रधान होता है तथा दोनों पदों में उपमेय-उपमान अथवा विषेषण-
विषेष्य का सम्बन्ध होता है।
नीलकमल में – नील (विषेषण) तथा कमल (विषेष्य) है।
महासागर, महापुरूष, शुभागमन, नवयुवक, अल्पाहार, भलामानुष, बहुसंख्यक(हिन्दु), बहुमूल्य, भ्रष्टाचार,
शीतोष्ण- शीत है जो उष्ण है।
उपमेय-उपमान:- चन्द्रमुख, कमलनयन, मृगनयनी-मृग, के नयनों के समान नयन है जिसके, कंजमुख
4. द्विगु समास:- इसमें एक पद संख्यावाची विषेषण होता है तथा शेष पद समूह का बोध कराता है, इसमें
दूसरा पद प्रधान होता है, ऐसे समास में एक ही संख्या वाले शब्द सम्मिलित होते है जैसे:-
एकांकी:- एक अंक का
इकतारा:- एक तार का
चौराहा:- चार राहों का समाहार, सप्तर्षि, नवरत्न, सतसई, अष्टाध्यायी, पंचामृत(घी, दूध, दही, शहद)
5. द्वन्द्व समास: – इसमें दोनों पद प्रधान होते है, दोनों पदो ंके मध्य ‘ और ‘ या ‘ या ‘ आदि का लोप
होता है। जैसे:- माता-पिता, अन्नजल, गुरू-षिष्य
पच्चीस:- पाँच और बीस अड़सठ:- आठ और सा�
धनुर्बाण, धर्माधर्म, हरिहर, दाल रोटी- दाल रोटी आदि ।
भला बुरा- बुरा आदि, अडौसी-पड़ौसी:- पड़ौसी आदि ।
एक-दो:- एक या दो, दस-बारह:- दस या बारह, दस से बारह तक।
6. बहुव्रीहि समास:- दोनों पक्षों में से कोई पद प्रधान नहीं होता है, अपितु तीसरे पद
की कल्पना की जाती है। जैसे:- लम्बोदर, दषानन, पवनपुत्र, भालचंद्र(षिव), चन्द्रमौलि, सूपकर्ण(गणेष),
षडानन (कार्तिकेय), भूलपाणि(षिव) ।
दूसरा पद प्रधान होता है, ऐसे समास में एक ही संख्या वाले शब्द सम्मिलित होते है जैसे:-
एकांकी:- एक अंक का
इकतारा:- एक तार का
चौराहा:- चार राहों का समाहार, सप्तर्षि, नवरत्न, सतसई, अष्टाध्यायी, पंचामृत(घी, दूध, दही, शहद)
5. द्वन्द्व समास: – इसमें दोनों पद प्रधान होते है, दोनों पदो ंके मध्य ‘ और ‘ या ‘ या ‘ आदि का लोप
होता है। जैसे:- माता-पिता, अन्नजल, गुरू-षिष्य
पच्चीस:- पाँच और बीस अड़सठ:- आठ और सा�
धनुर्बाण, धर्माधर्म, हरिहर, दाल रोटी- दाल रोटी आदि ।
भला बुरा- बुरा आदि, अडौसी-पड़ौसी:- पड़ौसी आदि ।
एक-दो:- एक या दो, दस-बारह:- दस या बारह, दस से बारह तक।
6. बहुव्रीहि समास:- दोनों पक्षों में से कोई पद प्रधान नहीं होता है, अपितु तीसरे पद
की कल्पना की जाती है। जैसे:- लम्बोदर, दषानन, पवनपुत्र, भालचंद्र(षिव), चन्द्रमौलि, सूपकर्ण(गणेष),
षडानन (कार्तिकेय), भूलपाणि(षिव) ।
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