🎯Target With Rudra 🎯📖 आज का विषय 📖 सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ई.पू.) ©️ Rudra Coaching Classes ™️ 👤 Rudra Tripathi ✍️ 📞 9️⃣4️⃣5️⃣3️⃣7️⃣8️⃣9️⃣6️⃣0️⃣8️⃣



सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ई.पू.)






सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी. यह हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है. इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ. मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केंद्र थे.


रेडियो कार्बन c14 जैसी विलक्षण-पद्धति के द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई पू से 1750 ई पूर्व मानी गई है.


सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की.


सिंधु सभ्यता को प्राक्ऐतिहासिक (Prohistoric) युग में रखा जा सकता है.


इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ और भूमध्यसागरीय थे.


सिंधु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुतकांगेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल आलमगीर ( मेरठ), उत्तरी पुरास्थल मांदा ( अखनूर, जम्मू कश्मीर) और दक्षिणी पुरास्थल दाइमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) हैं.


सिंधु सभ्यता सैंधवकालीन नगरीय सभ्यता थी.  सैंधव सभ्‍यता से प्राप्‍त परिपक्‍व अवस्‍था वाले स्‍थलों में केवल 6 को ही बड़े नगरों की संज्ञा दी गई है. ये हैं: मोहनजोदड़ों, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलवीरा, राखीगढ़ और कालीबंगन.


हड़प्पा के सर्वाधिक स्थल गुजरात से खोजे गए हैं.


लोथल और सुतकोतदा-सिंधु सभ्यता का बंदरगाह था.


जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है.


मोहनजोदड़ो से मिले अन्नागार शायद सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत थी.


मोहनजोदड़ो से मिला स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जो 11.88 मीटर लंबा, 7 मीटर चौड़ा है.


अग्निकुंड लोथल और कालीबंगा से मिले हैं.


मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता की मूर्ति मिली है जिसके चारो ओर हाथी, गैंडा, चीता और भैंसा थे.


हड़प्पा की मोहरों में एक ऋृंगी पशु का अंकन मिलता है.


मोहनजोदड़ों से एक नर्तकी की कांस्य की मूर्ति मिली है.


मनके बनाने के कारखाने लोथल और चन्हूदड़ों में मिले हैं.


सिंधु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है. यह लिपि दाई से बाईं ओर लिखी जाती है.


सिंधु सभ्यता के लोगों ने नगरों और घरों के विनयास की ग्रिड पद्धति अपनाई थी, यानी दरवाजे पीछे की ओर खुलते थे.


सिंधु सभ्यता की मुख्य फसलें थी गेहूं और जौ.


सिंधु सभ्यता को लोग मिठास के लिए शहद का इस्तेमाल करते थे.


रंगपुर और लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती का प्रमाण मिला है.


सरकोतदा, कालीबंगा और लोथल से सिंधुकालीन घोड़ों के अस्थिपंजर मिले हैं.


तौल की इकाई 16 के अनुपात में थी.


सिंधु सभ्यता के लोग यातायात के लिए बैलगाड़ी और भैंसागाड़ी का इस्तेमाल करते थे.


मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिंधु सभ्यता से ही है.


हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग को हाथों में था.


सिंधु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानते थे और पूजा करते थे.


पेड़ की पूजा और शिव पूजा के सबूत भी सिंधु सभ्यता से ही मिलते हैं.


स्वस्तिक चिह्न हड़प्पा सभ्यता की ही देन है. इससे सूर्यपासना का अनुमान लगाया जा सकता है.


सिंधु सभ्यता के शहरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं.


सिंधु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना होती थी.


पशुओं में कूबड़ वाला सांड, इस सभ्यता को लोगों के लिए पूजनीय था.


स्त्री की मिट्टी की मूर्तियां मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि सैंधव सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था.


सैंधव सभ्यता के लोग सूती और ऊनी वस्त्रों का इस्तेमाल करते थे.


मनोरंजन के लिए सैंधव सभ्यता को लोग मछली पकड़ना, शिकार करना और चौपड़ और पासा खेलते थे.


कालीबंगा एक मात्र ऐसा हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर भी किले से घिरा हुआ था.


सिंधु सभ्यता के लोग तलवार से परिचित नहीं थे.


पर्दा-प्रथा और वैश्यवृत्ति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थीं.


शवों को जलाने और गाड़ने की प्रथाएं प्रचलित थी. हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ों में जलाने की प्रथा थी. लोथल और कालीबंगा में काफी युग्म समाधियां भी मिली हैं.


सैंधव सभ्यता के विनाश का सबसे बड़ा कारण बाढ़ था.


आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है। 




          



सिन्धु घाटी सभ्यता में लोग पत्थर के औज़ारों का काफी उपयोग करते थे, इसके साथ-साथ वे कई धातुओं से भी परिचित थे, इसमें कांसा धातु प्रमुख थी। ताम्बे और टिन के मिश्रण ने कांस्य धातु का निर्माण किया जाता हूँ। सिन्धु घाटी सभ्यता में कला व शिल्प काफी विकसित था, कई स्थानों से उत्तम कलाकृतियों की प्राप्त हुई है। सिन्धु घाटी सभ्यता में बर्तन का निर्माण, मूर्तियों का निर्माण व मुद्रा का निर्माण इत्यादि प्रमुख शिल्प थे।

सिन्धु घाटी सभ्यता में कांस्य कलाकृतियाँ, मृणमूर्तियाँ, मनके की वस्तुएं व मुहरें प्राप्त हुई हैं। मनकों का निर्माण कार्नेलियन, जेस्पर, स्फटिक, क्वार्टज़, ताम्बे, कांसे, सोने, चांदी, शंख, फ्यांस इत्यादि का उपयोग किया गया था। सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग नाव निर्माण की कला भी जानते थे। औज़ार, हथियार, गहने व बर्तनों के निर्माण के लिए ताम्बा और कांसा धातु का इस्तेमाल किया जाता था। सिन्धु घाटी सभ्यता से फलक, बाट व मनके प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो से हाथ से बुने हुए सूती कपडे का एक टुकड़ा मिला है। उत्तर प्रदेश के आलमगीर मिट्टी की नांद पर बुने हुए वस्त्र के चिह्न मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता में नाव के उपयोग के साक्ष्य भी मिले हैं। भारत चांदी की खोज सबसे पहले सिन्धु घाटी सभ्यता में की गयी थी।

मिट्टी से निर्मित बर्तन

मिट्टी से बने बर्तनों को मृदभांड कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त मृदभांड कुम्हार की चाक से निर्मित हैं। इन बर्तनों पर गाढ़ी लाल चिकनी मिट्टी से सुन्दर चित्र बनाये गए हैं।सिन्धु घाटी सभ्यता में बर्तनों पर वृत्त, वृक्ष तथा मनुष्य की चित्रकारी देखने को मिलती है।

सिन्धु घाटी सभ्यता में बड़ी संख्या में टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।चहूंदड़ो और लोथल में मनके बनाने का कार्य किया जाता था। चहूंदड़ो से सेलखड़ी की मुहरें प्राप्त हुई हैं, बालाकोट और लोथल में सीप उद्योग स्थित था। मिट्टी के बर्तनों में एकरूपता थी, कई बर्तनों पर मुद्रा के निशान भी प्राप्त हुए हैं। संभवतः उन बर्तनों का व्यापार भी होता था।

मिट्टी से निर्मित मूर्तियाँ

सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त अधिकतर मृणमूर्तियाँ पकी मिटटी से बनी हैं। मिट्टी से बनी मूर्तियों का उपयोग खिलौने के रूप में किया जाता था, यह मूर्तियाँ पूजा की प्रतिमा के रूप में भी बनायीं जाती थी। मिट्टी से बनी मूर्तियों को मृणमूर्तियाँ कहा जाता है। हड़प्पा संस्कृति में मनुष्य के अलावा पशु और पक्षियों, बैल, भैंसा, भेड़, बकरी, बाघ, सूअर, गैंडा, भालू, मोर, बन्दर, तोता, बतख और कबूतर की मृणमूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। मानव की मृणमूर्तियाँ ठोस हैं जबकि पशुओं की मृणमूर्तियाँ अन्दर से खोखली हैं।

धातु से बनी मूर्तियाँ

मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा और चंहूदड़ो से धातु से बनी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।मोहनजोदड़ो से एक कांसे से बनी नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है, इसके गले में कंठहार है और हाथों में चूड़ियाँ व कंगन हैं।

पत्थर से बनी मूर्तियाँ

मोहनजोदड़ो से पत्थर से निर्मित एक पुजारी की मूर्ति प्राप्त हुई है, इस मूर्ति की मूछें नहीं हैं परन्तु दाढ़ी है। मूर्ति के बांयें कंधे पर शाल बनायीं गयी है।इस मूर्ति की आँखे आधी खुली हुई हैं, निचले होंठ मोटे, और उसकी नज़र नाक के अगले हिस्से पर टिकी हुई है। सिन्धु घाटी सभ्यता में एक संयुक्त पशु की मूर्ति भी प्राप्त हुई है, जिसका शरीर भेड़ का सिर हाथी का है। महाराष्ट्र के दैमाबाद से ताम्बे का रथ चलाता मनुष्य, सांड, गैंडा और हाथी की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।


मुहरें

सिन्धु घाटी क्षेत्र के काफी मात्रा में मुहरें प्राप्त हुई हैं, सिन्धु घाटी के अध्ययन में मुहरों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। यहाँ से कई राज्यों व अन्य देशों की मुहरें प्राप्त हुई हैं। इन मुहरों से सिन्धु घाटी सभ्यता के विदेशी व्यापार और अन्य क्षेत्रों के साथ संबंधों के बारे में पता चलता है।सिन्धु घाटी से विभिन्न प्रकार की मुहरें प्राप्त हुई हैं, यह मुहरें बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार, और वृत्ताकार रूप में प्राप्त हुई हैं। यहाँ पर सिन्धु घाटी की मुहरों के अलावा उन क्षेत्रों की मुहरों भी मिली हैं जिनसे सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार करते थे। यहाँ पर मेसोपोटामिया और दिलमुन की मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। यह मुहरें स्टेटाइट, फ्यांस, गोमेद, चर्ट और मिट्टी की बनी हुई हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त अधिकतर मुहरों पर अभिलेख, एक सींग वाला बैल, भैंस, बाघ, गैंडा, हिरण, बकरी व हाथ के चित्र अंकित हैं। इनमे सर्वाधिक आकृतियाँ एक सींग वाले बैल की हैं।मोहनजोदड़ो, लोथल और कालीबंगा से राजमुन्द्रक प्राप्त हुए हैं, प्राप्त मुहरें में से सर्वाधिक मुहरें चौकोर हैं। सबसे ज्यादा मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं, इन मुहरों पर शेर, ऊँट और घोड़े का चित्रण नहीं हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पशुपति शिव की आकृति बनी हुई है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक अन्य मुहर पर पीपल की दो शाखाओं के बीच निर्वस्त्र स्त्री का चित्र अंकित है।





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