🎯Target With Rudra 🎯📖 आज का विषय 📖 सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ई.पू.) ©️ Rudra Coaching Classes ™️ 👤 Rudra Tripathi ✍️ 📞 9️⃣4️⃣5️⃣3️⃣7️⃣8️⃣9️⃣6️⃣0️⃣8️⃣



सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ई.पू.)






सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ई.पू.) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी. यह हड़प्पा सभ्यता और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है. इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ. मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केंद्र थे.


रेडियो कार्बन c14 जैसी विलक्षण-पद्धति के द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई पू से 1750 ई पूर्व मानी गई है.


सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की.


सिंधु सभ्यता को प्राक्ऐतिहासिक (Prohistoric) युग में रखा जा सकता है.


इस सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड़ और भूमध्यसागरीय थे.


सिंधु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुतकांगेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल आलमगीर ( मेरठ), उत्तरी पुरास्थल मांदा ( अखनूर, जम्मू कश्मीर) और दक्षिणी पुरास्थल दाइमाबाद (अहमदनगर, महाराष्ट्र) हैं.


सिंधु सभ्यता सैंधवकालीन नगरीय सभ्यता थी.  सैंधव सभ्‍यता से प्राप्‍त परिपक्‍व अवस्‍था वाले स्‍थलों में केवल 6 को ही बड़े नगरों की संज्ञा दी गई है. ये हैं: मोहनजोदड़ों, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलवीरा, राखीगढ़ और कालीबंगन.


हड़प्पा के सर्वाधिक स्थल गुजरात से खोजे गए हैं.


लोथल और सुतकोतदा-सिंधु सभ्यता का बंदरगाह था.


जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है.


मोहनजोदड़ो से मिले अन्नागार शायद सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत थी.


मोहनजोदड़ो से मिला स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जो 11.88 मीटर लंबा, 7 मीटर चौड़ा है.


अग्निकुंड लोथल और कालीबंगा से मिले हैं.


मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता की मूर्ति मिली है जिसके चारो ओर हाथी, गैंडा, चीता और भैंसा थे.


हड़प्पा की मोहरों में एक ऋृंगी पशु का अंकन मिलता है.


मोहनजोदड़ों से एक नर्तकी की कांस्य की मूर्ति मिली है.


मनके बनाने के कारखाने लोथल और चन्हूदड़ों में मिले हैं.


सिंधु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है. यह लिपि दाई से बाईं ओर लिखी जाती है.


सिंधु सभ्यता के लोगों ने नगरों और घरों के विनयास की ग्रिड पद्धति अपनाई थी, यानी दरवाजे पीछे की ओर खुलते थे.


सिंधु सभ्यता की मुख्य फसलें थी गेहूं और जौ.


सिंधु सभ्यता को लोग मिठास के लिए शहद का इस्तेमाल करते थे.


रंगपुर और लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती का प्रमाण मिला है.


सरकोतदा, कालीबंगा और लोथल से सिंधुकालीन घोड़ों के अस्थिपंजर मिले हैं.


तौल की इकाई 16 के अनुपात में थी.


सिंधु सभ्यता के लोग यातायात के लिए बैलगाड़ी और भैंसागाड़ी का इस्तेमाल करते थे.


मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का अभिप्राय सिंधु सभ्यता से ही है.


हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग को हाथों में था.


सिंधु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानते थे और पूजा करते थे.


पेड़ की पूजा और शिव पूजा के सबूत भी सिंधु सभ्यता से ही मिलते हैं.


स्वस्तिक चिह्न हड़प्पा सभ्यता की ही देन है. इससे सूर्यपासना का अनुमान लगाया जा सकता है.


सिंधु सभ्यता के शहरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं.


सिंधु सभ्यता में मातृदेवी की उपासना होती थी.


पशुओं में कूबड़ वाला सांड, इस सभ्यता को लोगों के लिए पूजनीय था.


स्त्री की मिट्टी की मूर्तियां मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि सैंधव सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक था.


सैंधव सभ्यता के लोग सूती और ऊनी वस्त्रों का इस्तेमाल करते थे.


मनोरंजन के लिए सैंधव सभ्यता को लोग मछली पकड़ना, शिकार करना और चौपड़ और पासा खेलते थे.


कालीबंगा एक मात्र ऐसा हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर भी किले से घिरा हुआ था.


सिंधु सभ्यता के लोग तलवार से परिचित नहीं थे.


पर्दा-प्रथा और वैश्यवृत्ति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थीं.


शवों को जलाने और गाड़ने की प्रथाएं प्रचलित थी. हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ों में जलाने की प्रथा थी. लोथल और कालीबंगा में काफी युग्म समाधियां भी मिली हैं.


सैंधव सभ्यता के विनाश का सबसे बड़ा कारण बाढ़ था.


आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है। 




          



सिन्धु घाटी सभ्यता में लोग पत्थर के औज़ारों का काफी उपयोग करते थे, इसके साथ-साथ वे कई धातुओं से भी परिचित थे, इसमें कांसा धातु प्रमुख थी। ताम्बे और टिन के मिश्रण ने कांस्य धातु का निर्माण किया जाता हूँ। सिन्धु घाटी सभ्यता में कला व शिल्प काफी विकसित था, कई स्थानों से उत्तम कलाकृतियों की प्राप्त हुई है। सिन्धु घाटी सभ्यता में बर्तन का निर्माण, मूर्तियों का निर्माण व मुद्रा का निर्माण इत्यादि प्रमुख शिल्प थे।

सिन्धु घाटी सभ्यता में कांस्य कलाकृतियाँ, मृणमूर्तियाँ, मनके की वस्तुएं व मुहरें प्राप्त हुई हैं। मनकों का निर्माण कार्नेलियन, जेस्पर, स्फटिक, क्वार्टज़, ताम्बे, कांसे, सोने, चांदी, शंख, फ्यांस इत्यादि का उपयोग किया गया था। सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग नाव निर्माण की कला भी जानते थे। औज़ार, हथियार, गहने व बर्तनों के निर्माण के लिए ताम्बा और कांसा धातु का इस्तेमाल किया जाता था। सिन्धु घाटी सभ्यता से फलक, बाट व मनके प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो से हाथ से बुने हुए सूती कपडे का एक टुकड़ा मिला है। उत्तर प्रदेश के आलमगीर मिट्टी की नांद पर बुने हुए वस्त्र के चिह्न मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता में नाव के उपयोग के साक्ष्य भी मिले हैं। भारत चांदी की खोज सबसे पहले सिन्धु घाटी सभ्यता में की गयी थी।

मिट्टी से निर्मित बर्तन

मिट्टी से बने बर्तनों को मृदभांड कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त मृदभांड कुम्हार की चाक से निर्मित हैं। इन बर्तनों पर गाढ़ी लाल चिकनी मिट्टी से सुन्दर चित्र बनाये गए हैं।सिन्धु घाटी सभ्यता में बर्तनों पर वृत्त, वृक्ष तथा मनुष्य की चित्रकारी देखने को मिलती है।

सिन्धु घाटी सभ्यता में बड़ी संख्या में टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।चहूंदड़ो और लोथल में मनके बनाने का कार्य किया जाता था। चहूंदड़ो से सेलखड़ी की मुहरें प्राप्त हुई हैं, बालाकोट और लोथल में सीप उद्योग स्थित था। मिट्टी के बर्तनों में एकरूपता थी, कई बर्तनों पर मुद्रा के निशान भी प्राप्त हुए हैं। संभवतः उन बर्तनों का व्यापार भी होता था।

मिट्टी से निर्मित मूर्तियाँ

सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त अधिकतर मृणमूर्तियाँ पकी मिटटी से बनी हैं। मिट्टी से बनी मूर्तियों का उपयोग खिलौने के रूप में किया जाता था, यह मूर्तियाँ पूजा की प्रतिमा के रूप में भी बनायीं जाती थी। मिट्टी से बनी मूर्तियों को मृणमूर्तियाँ कहा जाता है। हड़प्पा संस्कृति में मनुष्य के अलावा पशु और पक्षियों, बैल, भैंसा, भेड़, बकरी, बाघ, सूअर, गैंडा, भालू, मोर, बन्दर, तोता, बतख और कबूतर की मृणमूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं। मानव की मृणमूर्तियाँ ठोस हैं जबकि पशुओं की मृणमूर्तियाँ अन्दर से खोखली हैं।

धातु से बनी मूर्तियाँ

मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगा और चंहूदड़ो से धातु से बनी मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।मोहनजोदड़ो से एक कांसे से बनी नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है, इसके गले में कंठहार है और हाथों में चूड़ियाँ व कंगन हैं।

पत्थर से बनी मूर्तियाँ

मोहनजोदड़ो से पत्थर से निर्मित एक पुजारी की मूर्ति प्राप्त हुई है, इस मूर्ति की मूछें नहीं हैं परन्तु दाढ़ी है। मूर्ति के बांयें कंधे पर शाल बनायीं गयी है।इस मूर्ति की आँखे आधी खुली हुई हैं, निचले होंठ मोटे, और उसकी नज़र नाक के अगले हिस्से पर टिकी हुई है। सिन्धु घाटी सभ्यता में एक संयुक्त पशु की मूर्ति भी प्राप्त हुई है, जिसका शरीर भेड़ का सिर हाथी का है। महाराष्ट्र के दैमाबाद से ताम्बे का रथ चलाता मनुष्य, सांड, गैंडा और हाथी की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।


मुहरें

सिन्धु घाटी क्षेत्र के काफी मात्रा में मुहरें प्राप्त हुई हैं, सिन्धु घाटी के अध्ययन में मुहरों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है। यहाँ से कई राज्यों व अन्य देशों की मुहरें प्राप्त हुई हैं। इन मुहरों से सिन्धु घाटी सभ्यता के विदेशी व्यापार और अन्य क्षेत्रों के साथ संबंधों के बारे में पता चलता है।सिन्धु घाटी से विभिन्न प्रकार की मुहरें प्राप्त हुई हैं, यह मुहरें बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार, और वृत्ताकार रूप में प्राप्त हुई हैं। यहाँ पर सिन्धु घाटी की मुहरों के अलावा उन क्षेत्रों की मुहरों भी मिली हैं जिनसे सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग व्यापार करते थे। यहाँ पर मेसोपोटामिया और दिलमुन की मुहरें भी प्राप्त हुई हैं। यह मुहरें स्टेटाइट, फ्यांस, गोमेद, चर्ट और मिट्टी की बनी हुई हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता से प्राप्त अधिकतर मुहरों पर अभिलेख, एक सींग वाला बैल, भैंस, बाघ, गैंडा, हिरण, बकरी व हाथ के चित्र अंकित हैं। इनमे सर्वाधिक आकृतियाँ एक सींग वाले बैल की हैं।मोहनजोदड़ो, लोथल और कालीबंगा से राजमुन्द्रक प्राप्त हुए हैं, प्राप्त मुहरें में से सर्वाधिक मुहरें चौकोर हैं। सबसे ज्यादा मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं, इन मुहरों पर शेर, ऊँट और घोड़े का चित्रण नहीं हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पशुपति शिव की आकृति बनी हुई है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक अन्य मुहर पर पीपल की दो शाखाओं के बीच निर्वस्त्र स्त्री का चित्र अंकित है।





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टिड्डियों के बारे में मुख्य तथ्य...



भारत में टिड्डियों का हमला: रेगिस्तानी टिड्डियों के एक बड़े झुंड ने अपनी भूख को संतुष्ट करने के लिए फसलों और हरियाली की तलाश में पाकिस्तान के रास्ते से भारत के राजस्थान राज्य में प्रवेश किया है. वर्ष 2019 में ईरान से ये टिड्डियों के झुंड आये, जो पाकिस्तान में चले गए थे और अब भारत के राजस्थान, पंजाब, गुजरात और मध्य प्रदेश में प्रवेश कर गए हैं. ये रेगिस्तानी टिड्डियां पहले भी उत्तर और मध्य भारत के क्षेत्रों को प्रभावित कर चुकी हैं और धीरे-धीरे दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की ओर बढ़ रही हैं.
जबकि भारत पहले से ही अपनी अर्थव्यवस्था पर नोवल कोरोना वायरस के हानिकारक परिणामों से जूझ रहा है, टिड्डियों का यह हमला/ विपत्ति हमारी कृषि अर्थव्यवस्था को और अधिक बर्बाद कर सकते हैं और भारत की खाद्य सुरक्षा को जोखिम में डाल सकते हैं. पिछले तीन दशकों में यह अब तक का सबसे ख़तरनाक हमला है. टिड्डी चेतावनी संगठन ने इन टिड्डियों के झुंड को मारने के लिए राजस्थान में रसायनों के छिड़काव के लिए ड्रोन के उपयोग का सुझाव दिया है.
आइए अब कुछ ऐसे महत्वपूर्ण सवालों पर एक नज़र डालते हैं जिनसे टिड्डियों के बारे में हर बात का जवाब मिल सकता है:
टिड्डियों के बारे में मुख्य तथ्य
रेगिस्तानी टिड्डियां सबसे खतरनाक प्रवासी कीटों में से एक हैं.

ये टिड्डियों के झुंड अपने रास्ते में आने वाले सभी क्षेत्रों, विशेष रूप से हरे क्षेत्रों को, नुकसान पहुंचाने और चट करने के लिए जाने जाते हैं.
रेगिस्तानी टिड्डियां आमतौर पर विशाल झुंडों में चलती हैं और प्रत्येक झुंड में प्रत्येक वर्ग किलोमीटर में 150 मिलियन टिड्डियां होती हैं.
प्रश्न 1. रेगिस्तानी टिड्डियां क्या हैं?
उत्तर: रेगिस्तानी टिड्डियां टिड्डी परिवार की प्रजातियों में से एक है और इसे वैज्ञानिक तौर पर शिस्टोसेरका ग्रीगेरिया (फोर्स्कल) के नाम से जाना जाता है. ये विशाल झुंडों में चलते हैं और अत्यधिक गतिशील होते हैं.
प्रश्न 2. टिड्डियां कैसी दिखती हैं?
उत्तर: ये टिड्डियां अन्य टिड्डियों की तरह ही दिखती हैं और प्रकृति में छोटे-सींग वाले, अनुकूलक और प्रवासी होने के कारण उनसे भिन्न होते हैं.
प्रश्न 3. टिड्डी का जीवन काल कितना होता है?
उत्तर: एक टिड्डी का जीवनकाल सिर्फ 90 दिन का होता है.
प्रश्न 4. ये टिड्डियां क्या खाती हैं?
उत्तर: रेगिस्तानी टिड्डियां अतृप्त खाने भक्षक होती हैं; वे एक दिन में अपने शरीर के वजन के बराबर भोजन खाती हैं. वे हरे और पत्तेदार पौधे, खेत, हरी फसलें और चारागाह को अपना भोजन बना लेती हैं. वे केवल दिन के समय ही अपना आहार खाती हैं.
उत्तर: ये टिड्डियां उपयुक्त मौसम और क्षेत्रों में प्रजनन करती हैं. वे बहुत ही उच्च प्रजनन क्षमता के साथ प्रजनन करती हैं. ये टिड्डियां केवल 3 प्रजनन मौसमों में अपनी जनसंख्या में 16000 गुना वृद्धि कर लेती हैं.
उत्तर: टिड्डियों के एक विशाल समूह को टिड्डी झुंड के रूप में जाना जाता है. जब ये टिड्डियां झुंड में फसलों पर हमला करती हैं और कृषि अर्थव्यवस्था को बिगाड़ देती हैं और इसे टिड्डी विपत्ति/ प्लेग के रूप में जाना जाता है.
प्रश्न 7. क्या टिड्डियां हानिकारक या खतरनाक होती हैं?
उत्तर: हां, टिड्डियां फसलों और खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं. अन्यथा, ये हानिरहित कीट हैं.
उत्तर: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और अन्य हितधारक जैसे राज्य सरकारें और किसान टिड्डी नियंत्रण संबंधी कार्यों में शामिल होते हैं.

हैप्पीनेस करिकुलम क्या है? दिल्ली के सरकारी स्कूल पहुंचीं मेलानिया ट्रम्प


अमेरिका की प्रथम महिला मेलानिया ट्रम्प दक्षिण दिल्ली स्थित नानकपुरा स्कूल पहुंचीं जहां उन्होंने हैप्पीनेस क्लास का जायजा लिया.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पत्नी मेलानिया ट्रम्प ने 25 फरवरी 2020 को दिल्ली के एक सरकारी स्कूल का दौरा किया. वे दिल्ली सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में चलाये जा रहे ‘हैप्पीनेस करिकुलम’ को जानने के लिए इस स्कूल में आईं थीं.

अमेरिका की प्रथम महिला दक्षिण दिल्ली स्थित नानकपुरा स्कूल पहुंचीं जहां उनका माथे पर टीका लगाकर स्वागत किया गया. इसके बाद उन्होंने स्कूल की हैप्पीनेस क्लास में शिरकत की. यह दिल्ली सरकार द्वारा आरंभ किया गया एक विशेष पाठ्यक्रम है जिसमें बच्चों को रूटीन शिक्षा के अलावा दिलचस्प तरीके से शिक्षा प्रदान की जाती है.
क्या है हैप्पीनेस क्लास?👇🇮🇳
यह दिल्ली सरकार द्वारा सरकारी स्कूलों में लागू किया गया विशेष कार्यक्रम है जिसके तहत नर्सरी से आठवीं तक के बच्चों को रोजाना पहला पीरियड यानी 40 मिनट में हैप्पीनेस पर ध्यान दिया जाता है. हैप्पीनेस करिकुलम के तहत बच्चों को मेडिटेशन कराया जाता है, ज्ञानवर्धक और नैतिकता संबंधित कहानियां सुनाई जाती हैं. उन्हें गेम्स खिलाये जाते हैं या एनी ज्ञानवर्धक जानकारी दी जाती है.
हैप्पीनेस क्लास का उद्देश्य बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाना है. इस क्लास की शुरुआत पांच मिनट के मेडिटेशन से होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की क्लास से बच्चों का स्कूल की ओर रुझान बढ़ता है साथ ही उनमें गुस्सा, द्वेष और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावनाओं से बचाया जा सकता है.
हैप्पीनेस क्लास में मेलानिया ट्रम्प👇🇮🇳

मेलानिया ट्रम्प ने अपने इस दौरे में हैप्पीनेस क्लास के प्रति विशेष रुचि दिखाई थी. उन्होंने इस क्लास में भाग लेने के बाद कहा कि हैप्पीनेस क्लास में पाठ्यक्रम बहुत रुचिकर है और ऐसे कार्यक्रम दुनिया के प्रेरणा बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि यहां के लोग बहुत मिलनसार और दयालू हैं तथा उन्हें दिल्ली के इस स्कूल में आकर ख़ुशी मिली है. इस दौरान उन्होंने बच्चों से बातें भी कीं और पाठ्यक्रम का जायजा भी लिया.
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक ट्वीट करके अपनी ख़ुशी जाहिर की उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि मेलानिया ट्रम्प सरकारी स्कूल में गईं. भारत ने विश्व को अध्यात्म की शिक्षा दी है. मेलानिया ट्रम्प यहां से ख़ुशी का सन्देश लेकर जायेंगी.

भारत-अमेरिका के मध्य 3 बिलियन डॉलर के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर


भारत और अमेरिका के मध्य तीन बिलियन डॉलर के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये गये. इस समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हस्ताक्षर किये. 

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 25 फरवरी 2020 को एक बड़े रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किये. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दोनों देशों ने लगभग 3 बिलियन डॉलर के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किये हैं. यह समझौता दोनों देशों के नेताओं के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता के बाद किया गया.

इसके बाद दोनों नेताओं ने आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी करवाई की प्रतिबद्धता को दोहराया. राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत-अमेरिका के रिश्तों की मजबूती का जिक्र किया. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने संबोधन में कहा कि वे भारत के इस दौरे को हमेशा याद रखेंगे तथा उन्होंने भारतीयों द्वारा किये गये शानदार स्वागत के लिए सभी को धन्यवाद भी कहा.

भारत-अमेरिका रक्षा सौदा👇🇮🇳
भारत और अमेरिका के मध्य तीन बिलियन डॉलर के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये गये. इस समझौते पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हस्ताक्षर किये. इस समझौते में अमेरिका के 23 एमएच 60 रोमियो हेलिकॉप्टर और छह एएच 64ई अपाचे हेलिकॉप्टर की खरीद शामिल है. द्विपक्षीय वार्ता के बाद जारी किये गये संयुक्त बयान में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि इस सौदे से दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध पहले से अधिक मजबूत हो सकेंगे. गौरतलब है कि यह दोनों हेलिकॉप्टर किसी भी प्रकार के मौसम में तथा दिन या रात में से कभी भी हमला करने में सक्षम हैं. चौथी पीढ़ी वाला अपाचे हेलिकॉप्टर छिपी हुई पनडुब्बियों को निशाना बना सकता है.

डोनाल्ड ट्रम्प ने क्या कहा?👇🇮🇳
द्विपक्षीय वार्ता के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने संबोधन में कहा कि भारत और अमेरिका के मध्य ड्रग तस्करी, नार्को-आतंकवाद और संगठितत अपराध जैसी गंभीर समस्याओं के बारे में एक नए मेकैनिज्म पर भी सहमति हुई है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों ने आतंक के खिलाफ अपने प्रयासों को और बढ़ाने का निश्चय किया है. उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने पर सहमत हैं.
द्विपक्षीय वार्ता के बाद संयुक्त संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत और अमेरिका के मध्य विशेष संबंध का सबसे महत्वपूर्ण आधार लोगों से संपर्क करने वाले लोग हैं. इनमें पेशेवर लोग, छात्रों, संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय प्रवासी का महत्वपूर्ण योगदान है. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि हमारे वाणिज्य मंत्रियों ने व्यापार पर सकारात्मक बातचीत की है. हम दोनों ने फैसला किया है कि हमारी टीमों को इन व्यापार वार्ता को कानूनी रूप देना चाहिए. हम एक बड़े व्यापार सौदे पर बातचीत आरंभ करने के लिए भी सहमत हुए हैं.

कैथरीन जॉनसन, प्रसिद्ध नासा गणितज्ञ, का 101 वर्ष की उम्र में निधन


कैथरीन जॉनसन अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के उस कंप्यूटर पूल का एक प्रमुख भाग थीं जिन्होंने अपोलो मिशन के माध्यम से मनुष्य को चाँद तक पहुंचाया.


नासा की प्रसिद्ध गणितज्ञ कैथरीन जॉनसन का हाल ही में निधन हो गया. वे 101 वर्ष की थीं. कैथरीन को नासा के मानव मिशन की गणनाओं के लिए जाना जाता है. कैथरीन ने नासा के शुरुआती मानव मिशन के लिए गणनाएं की थीं जिससे नासा के अभियानों को आसानी से पूरा किया जा सका.

कैथरीन जॉनसन के बारे में जानकारी👇🇮🇳

कैथरीन जॉनसन अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के कंप्यूटर पूल का एक प्रमुख भाग थीं. इस पूल को गणितज्ञों के एक समूह के रूप में जाना जाता था. नासा का यह कंप्यूटर पूल प्रत्येक अभियान के लिए डेटा जारी करता है तथा गणनाओं के आधार पर मिशन की रूपरेखा तैयार करता है. नासा ने इसी कंप्यूटर पूल की मदद से अपने पहले मानव अंतरिक्ष अभियान को सफल बनाया था. कैथरीन जॉनसन इसी पहले मानव मिशन के कंप्यूटर पूल का हिस्सा थीं. कैथरीन ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी.
उनका जन्म 1918 में वेस्ट वर्जीनिया में हुआ था, उन्हें बचपन से ही गणित में विशेष रुचि थी. नासा द्वारा प्रकाशित कैथरीन के बायोडेटा के अनुसार, वह वेस्ट वर्जीनिया की उन प्रतिभाशाली अश्वेत छात्रों में से थीं जिन्हें गणित और विज्ञान के लिए सबसे पहले शुरु की गई स्कॉलरशिप के लिए चुना गया था. उनहोंने 1969 में अपोलो-13 के चंद्रमा पर उतरने से पहले और अंतरिक्ष यात्रियों को वापस पृथ्वी पर लाने में अपनी गणनाओं से मदद की थी.
कैथरीन के जीवन पर वर्ष 2016 में हॉलीवुड फिल्म ‘द हिडन फिगर्स’ बनाई गई थी. यह फिल्म मॉर्गन ली शेट्टरली की किताब पर ‘हिडन फिगर्स’ पर आधारित थी. फिल्म में ताराजी पी हेंसन द्वारा कैथरीन की भूमिका निभाई गई थी. फिल्म को जनवरी 2017 में स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड मिला था. इस फिल्म को प्रतिष्ठित ऑस्कर की तीन श्रेणियों में भी नामांकित किया गया था. हालांकि, फिल्म ऑस्कर नहीं जीत पाई थी.

वर्ष 2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा उन्हें ‘प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ्रीडम’ से सम्मानित किया गया. ओबामा ने कहा था कि केथरीन ने समाज के दबाव को दरकिनार करते हुए स्वयं को किसी सीमा में बांधे रखने से इनकार किया और मानवता को नई ऊँचाईयों तक पहुंचाने में मदद की है. इसके अतिरिक्त नासा ने 2017 में उनके सम्मान में 'Katherine G. Johnson Computational Research Facility' के नाम से एक बिल्डिंग उन्हें समर्पित की

सेंट्रल एक्साइज दिवस 2020: जानिए इस दिवस का महत्व और पृष्ठभूमि



हर साल 24 फरवरी को, केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड (CBCE) पूरे देश में केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस मनाता है. इस दिवस का उद्देश्य केंद्रीय उत्पाद और कस्टम बोर्ड ऑफ इंडिया का अर्थव्यवस्था में योगदान का सम्मान करना है. इसके अतिरिक्त, केंद्रीय उत्पाद शुल्क बोर्ड, केंद्र सरकार के लिए एक प्राथमिक कर संग्रह एजेंसी होने के नाते, इस दिवस को अधिकारियों द्वारा की गई कड़ी मेहनत को सम्मानित करने के उद्देश्य से भी मनाता है.

इसके अलावा यह दिवस माल निर्माण व्यवसाय में भ्रष्टाचार की जाँच करने के लिए भी मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य देशवासियों को केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड के महत्व को बताना भी है.

इस अवसर पर केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क बोर्ड देश भर में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करता है, जिसमें सेमिनार, कार्यशालाएं, शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम, जागरूकता कार्यक्रम, प्रतियोगिताएं और पुरस्कार समारोह शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, बोर्ड आम जनता को CBCE और उसके अधिकारियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को समझने में मदद करने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों की एक श्रृंखला भी आयोजित करता है.

पृष्ठभूमि

प्रत्येक वर्ष केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस को 24 फरवरी 1944 को केंद्रीय उत्पाद शुल्क और नमक अधिनियम बनाए जाने के की याद के तौर पर भी मनाया जाता है.
सीबीसीई सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर के संग्रह और इससे संबंधित नीति निर्माण का भाग है.

इसके दायरे में सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर और मादक पदार्थों से संबंधित तस्करी आदि से संबंधित मामले भी आते हैं.

बोर्ड अपने अधीनस्थ संगठनों के लिए प्रशासनिक प्राधिकरण है, जिसमें कस्टम हाउस, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर आयुक्त और केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशाला शामिल हैं.

Rudraksh Tripathi @Rudragofficial

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